फतेहपुर हलके से कांग्रेस विधायक सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद अब यहां विधानसभा की सीट खाली है। ऐसे में अब यहां उपचुनाव होगा। फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा में मंथन शुरू हो गया है। चुनाव आयोग के अनुसार कुछ राज्यों में अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही यहां उपचुनाव हो सकता है। ऐसे में पार्टियों को रणनीति तैयार करने के लिए दो महीने का ही समय मिल पाएगा।
उपचुनाव में स्व. पठानिया के बेटे भवानी पठानिया जो की आज तक राजनीति और पार्टी के किसी पद से दूर रहे हैं उनका चुनावी रण में उतरने की चर्चा बनी हुई है। पर सालों से टिकट की दौड़ मे वरिष्ठ कांग्रेसियों को मनाना पार्टी हाई कमान के लिए विना घुड़सवार घोडों को काबू करने के समान होगा। क्योंकि फतेहपुर में कांग्रेस चार धडो़ं में बंट चूकी है । जंहा पर कांग्रेस के प्रदेश सचिव एवं पूर्व में जिला अध्यक्षा रही कांग्रेस नेत्री रीता गुलेरिया, और पुर्व में प्रदेश सचिव रहे चेतन चम्बियाल, प्रदेश सेवादल के प्रभारी वासु सोनी, निशवार सिंह टीकट के चाहवान वर्षों से पार्टी से टिकट मांगते हुए नजर आते रहे है । जबकि बीते चुनावों मे कांग्रेस से टीकट न मिलने से खफा चेतन चम्बियाल ने तो अजाद रुप में अपना नमाकन भर दिया था । मगर पूर्व में रहे पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के अश्वान के बाद उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया था । इस बार अगर कांग्रेस परिवार वाद मे टीकट देती है तो देखना यह रहेगा की उपरोक्त टीकट के चाहवान क्या चुप रहेगें।
वहीं, आज तक राजनीति से दूर रहे स्वर्गीय सुजान सिंह पठानियां के बेटे भावनी पठानिया निजी बैंक में उच्च पद पर कार्यरत हैं। वे अब तक राजनीति और पार्टी के किसी भी पद से दूर रहे , फतेहपुर जनता में उनकी पहचान पिता के कारण ही है । मगर खूद को राजनेता साबित करना मुश्किल होगा । जिसके चलते कांग्रेस हाईकमान को शायद उन्हें प्रत्याशी घोषित करने में उपरोक्त चेहरे दिक्कत बन जाए । यह सब कुछ देखते हुए अब यह भवानी पर निर्भर है कि वह पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए हामी भरते हैं या नहीं। कांग्रेस को उपचुनाव में बाजी मारने के लिए इस बार नई रणनीति और सोच बनानी होगी। ताकि हलके में पार्टी की गुटबाजी जगजाहिर न हो । वहीं, कांग्रेस हाईकमान को पिछले हुए उपचुनावों से हुई हार के बाद सीख लेनी चाहिए। नहीं तो कहीं एसा न हो की परिवारवाद की कस्ती में सवार होकर इस बार भी हार का मुंह न देखना पड़े।
पिछले तीन चुनाव में सुरते-हाल, गुटबाजी में उतरे पार्टी बगावतों ने बिगाड़ा हमेशा खेल
डा. राजन सुशांत के 2009 में लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने बलदेव चौधरी को मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब धूमल के नेतृत्व में सरकार ने बलदेव की जीत के लिए पूरा जोर लगाया था। मगर पार्टी की आपसी गुटबाजी में उपचुनाव में सुशांत के बड़े भाई मदन शर्मा ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा, जो भाजपा की हार का मुख्य कारण बने।
वहीं, 2012 के चुनाव में भाजपा ने बलदेव ठाकुर को टिकट थमाई। तब डा. सुशांत की पत्नी ने बतौर आजाद प्रत्याशी चुनाव लड़ा और भाजपा की नैया फिर पार नहीं लग सकी। 2017 के चुनाव में भाजपा ने फिर नए चेहरे के रूप में राज्यसभा के पूर्व सदस्य कृपाल परमार पर दांव खेला, लेकिन पार्टी से छिटके बलदेव ठाकुर भी मैदान में उतर आए। इस कारण भाजपा को फिर अपनों के कारण हार का मुंह देखना पड़ा। दूसरी ओर कांग्रेस नेता सुजान सिंह पठानिया ने जीत की हैट्रिक लगा दी। भाजपा पीछले तीन चुनावो में अपनों के बगावती तेवरों से जीत से दूर रही । मगर इस बार यह सुरतेहाल फतेहपुर कांग्रेस मे बने हुए है । अगर फतेहपुर कांग्रेस इस बार उपचुनावों में परिवारवाद में टीकट देती है तो कांग्रेस को अपनी बगावत ही हरा सकती है । अब ऐसे में सभी की नजरें इस बात पर रहेंगी कि अब उपचुनाव में पार्टी किसे अपना चेहरा बनाती है। वहीं, दूसरी और फतेहपुर में भाजपा से कृपाल परमार इस बार भी पार्टी के उम्मीदवार हो सकते हैं। हाल में धर्मशाला में हुई बैठक में कृपाल परमार को फतेहपुर से टीकट देने पर चर्चा हो चूकी है।
वहीं, कांग्रेस के प्रदेश सचिव एवं पूर्व में जिला अध्यक्षा रही कांग्रेस नेत्री रीता गुलेरिया, पुर्व कांग्रेस कमेटी के प्रदेश सचिव रहे चेतन चम्बियाल, प्रदेश सेवादल के प्रभारी वासु सोनी, पीसीसी डेलीगेट निशवार सिंह का कहना है की पीछली बार भी कांग्रेस टीकट के लिए अप्लाई किया था इस बार भी कांग्रेस टीकट के लिए अप्लाई करेगें । परिवारवाद कभी सहन नहीं होगा ।