पू्र्व मंत्री जीएस बाली ने प्रदेश सरकार पर हमला बोला है। जीएस बाली ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार का 3 साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है। लेकिन इन 3 सालों में किराया, सीमेंट, बिजली के दाम बढ़ाकर आम जनता पर आर्थिक बोझ डालने के अलावा सरकार की कोई खास उपलब्धि दिखाई नहीं देती। राशन डिपुओं में ख़राब राशन की ख़बरें अख़बारों की सुर्ख़ियां बन रही हैं। कोरोना काल में हेल्थ सेक्टर के घोटालों की जांच को ठंडे बस्ते की तरफ़ धकेला जा रहा है। बेरोज़गारी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसका सरकार के पास कोई तोड़ नहीं है।
पूर्व मंत्री ने कहा कि कोरोना काल में सरकार ने भविष्य की प्लानिंग और रूपरेखा सोचने विचारने और क्रियान्वयन करने से मुंह मोड़ लिया है। उल्टा चुने हुए विधायकों की निधि बंद करके ग्रामीण विकास पर लगाम लगा दी है। सरकारों का काम आगामी 5-10-15 सालों को मद्देनज़र रखते हुए ठोस नीतियां बनाकर प्रदेश के हितों को सुरक्षित और प्रगति पथ पर अग्रसर करना होता है । लेकिन यह सरकार दिन काट कर अपना समय पूरा कर रही है। अगर यही हाल रहा तो आर्थिक मोर्चे पर प्रदेश फ़ेल हो जाएगा । कर्मचारियों को तनख़्वाह, पेंशन तक देने के लाले पड़ जाएंगे ।
हिमाचल प्रदेश के भविष्य की बात है, आगे फिर कोई भी सरकार सत्ता में आए पटरी से उतरी गाड़ी को पटरी पर लाना आसान नहीं होगा। पर्यटन क्षेत्र में भी इन तीन सालों में कुछ विशेष नहीं किया गया । यह सरकार एक क्षेत्र विशेष तक सिमटी है हालांकि वहां भी विजन के अभाव में घोषणाओं से बढ़कर कुछ ख़ास नहीं कर पा रही ।
कांगड़ा की हो रही अनदेखी
GS बाली ने कहा की बीजेपी सरकार के कार्यकाल में पुराना कांगड़ा क्षेत्र सरकार की पूर्ण उपेक्षा का शिकार हो रहा है । पर्यटन, इंफ़्रा, रोज़गार, एग्री, होर्टी कल्चर, किसी भी क्षेत्र में इस इलाक़े को कोई बड़ा प्रोजेक्ट इन तीन सालों में नहीं मिला और न किसी नीति का इस क्षेत्र को हिस्सा रखा गया है। शिमला के बोझ को कम करने और कांगड़ा क्षेत्र के महत्व को देखते हुए यहां दूसरी राजधानी बनाई गई थी, लेकिन अब तक के कार्यकाल में कोई भी बड़ा ऑफिस यहां शिफ़्ट कर भार कम करने का फैसला नहीं लिया गया। यहां तक कि यहां के लोगों की समस्याओं को निपटाने के लिए कभी सरकार सीरीयस होकर यहां नहीं बैठी ।
उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी, अमृत योजना में कोई ख़ास काम नहीं हो रहा । 70 हाईवे निर्माण की घोषणा शिलान्यास पट्टिकाओं तक सीमित होकर रह गई है। 3 साल में घोषणाओं और काग़ज़ी वादों से आगे सरकार के न तो कोई काम हैं न भविष्य के हिमाचल, लोगों के बेरोज़गारी और पलायन से निपटने का कोई स्पष्ट विजन। हिमाचल सरकार एक नाकामयाब पंचायत की तर्ज़ पर प्रदेश को चला रही है । विजन और कर्म दोनों में फ़ेल पाई गई है।