Follow Us:

हिमाचल: 2012 में कांग्रेस का बोलबाला, 2017 में होगी कांटे की टक्कर?

पी. चंद |

हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटे हैं। इन 68 सीटों में 2017 में कौन सी पार्टी बड़ी बनकर उभरेगी ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन पिछले चुनावों के बात करें तो उस समय कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और कांग्रेस ने बीजेपी को लगभग 9 सीटों से मात दी थी।

जानकारी के मुताबिक, 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के खाते में 36 सीट आई, जबकि बीजेपी ने 27 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके अलावा चार निर्दलीय एवं एक सीट हिलोपा के हिस्से में आई थी। उस समय चुनावों में बीजेपी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी, लेकिन प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा ने बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया और बीजेपी को कांगड़ा से मात्र 3 सीटें ही मिल पाई। कांग्रेस ने कांगड़ा में 10 सीटें जीतकर सरकार बना ली, जबकि कांगड़ा के बाद मंडी जिले में मुक़ाबला कड़ा रहा और दोनों दलों ने बराबर सीटें हासिल की।

तीसरे सबसे बड़े जिला शिमला में भी कांग्रेस ने आठ सीटों में से 6 सीटों पर कब्जा किया। कांग्रेस के गढ़ सिरमौर में सेंधमारी करने के बावजूद बीजेपी सरकार नहीं बना पाई। किन्नौर ओर स्पीति जिला की दोनों सीटों पर कांग्रेस की जीत को छोड़ दिया जाए तो कुल्लू, सोलन, ऊना, हमीरपुर और बिलासपुर जिलों में भी दोनों दलों के बीच एक दो सीटों का फर्क रहा था।

इस बार नए समीकरण

अब हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक समीकरण अलग नज़र आ रहे है। एक तरफ सत्ता धारी कांग्रेस पार्टी है जिसनें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को सातवीं बार सीएम के चेहरे के रूप में घोषित कर दिया है। हालांकि, अभी तक बीजेपी सीटों से पिछड़ी हुई है, लेकिन प्रचार और संगठन की बैठकों के मामले में बीजेपी कांग्रेस से काफी आगे निकल चुकी है।

सबसे बड़ी बात जो भाजपा के पक्ष में है वह ये है कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद हिमाचल के कोई भी बड़ा चुनाव प्रदेश में कांग्रेस पार्टी नहीं जीत पाई। फिर चाहे लोकसभा चुनाव हो, सुजानपुर एवं भोरंज का उपचुनाव हो या नगर निगम शिमला का चुनाव हो कोई भी चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पाई है। हां धर्मशाला निगम और पंचायत चुनाव इसमें जरूर अपवाद है।

2017 के  विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस दोनों मुख्य दलों के बीच चुनावी घमासान होगा। दो माह पहले हिमाचल में बीजेपी का पलड़ा कांग्रेस के मुकाबले भारी माना जा रहा था, लेकिन मंहगाई, जीएसटी और पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामो ने बीजेपी के मिशन फिफ्टी के अंतर को कम कर दिया है। अब देखना ये होगा कि आज आदर्श चुनाव आचार संहिता के बाद दोनों दलों की क्या रणनीति रहती है?