<p>धर्मशाला का उपचुनाव क्या आया की भाजपा के लिए उम्मीदवारी तय करना ही गले की फांस बन गया। उमेश का पिछले विधानसभा चुनाव में किशन कपूर के नाम पर टिकट को कंप्रोमाइज कर देना जहां उमेश के लिए बड़े राजनीतिक लाभ के रूप में साबित हो सकता है, लेकिन इसी दौरान पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का नाम चर्चा में आना सभी के लिए राजनीतिक परेशानी का सबब बना हुआ। बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल थे और इतनी बड़ी सफलता के पीछे कहीं न कहीं धूमल का नाम उस समय रहा था लेकिन नतीजे बदलने के साथ ही यह कुर्सी जयराम ठाकुर को आसानी से मिल गयी। अब धर्मशाला का उपचुनाव होना तय हुआ है तो माना यह जा रहा है कि शांता समर्थक राजीव भारद्वाज और उमेश में टिकट को लेकर कड़ी टक्कर चल रही है।</p>
<p>पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का नाम भी कहीं न कहीं लगातार चर्चा में है। हालांकि, धूमल की इस विषय को लेकर कोई भी टिप्पणी अभी तक हां या ना के रूप में नहीं आई है। वहीं, जयराम ठाकुर और सतपाल सत्ती उनकी उम्मीदवारी को एक तरह से खारिज भी कर चुके हैं। लेकिन इन सबके बीच में एक बार फिर धूमल का नाम भी उम्मीदवारों की सूची में कहीं ना कहीं खड़ा नजर आ रहा है। धूमल के नाम पर बीजेपी में सन्नाटा किस लिए हो रहा है? इसका भी कारण स्पष्ट है कि अगर प्रेम कुमार धूमल किसी भी तरह से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में आते हैं तो स्वभाविक रूप से ही मुश्किलें पैदा कर सकता है और चुनौती ना सिर्फ जयराम ठाकुर को होगी बल्कि पूरे मंत्रिमंडल के लिए एक बड़ी चुनौती धर्मशाला का नतीजा धूमल की उम्मीदवारी के रूप में हो सकता है।</p>
<p>राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो पिछले कुछ समय से लगातार सरकार प्रदेश में बैकफुट पर चल रही है। भीतर और बाहर दोनों ही स्थितियां जयराम के लिए बहुत अधिक अनुकूल भी नज़र नहीं आ रही। इतना ही नहीं इस बात को लेकर भी चर्चा आम है कि प्रेम कुमार धूमल के तेवर भी सरकार को लेकर कुछ तलक हुए हैं और शिमला में हुई बैठक में जिस तरह से प्रेम कुमार धूमल ने पार्टी को लेकर चर्चा की थी और उसके बाद उन्हें दिल्ली बुला लिया गया था उसी के बाद से यह सारे हालात प्रदेश में बदले हुए नज़र आ रहे हैं। अब ऑफ द रिकॉर्ड बीजेपी के नेता तो यहां तक कहने लगे हैं कि अगर दिल्ली से टिकट आएगा तो स्थानीय स्तर पर नेता किस बात की चर्चा कर रहे हैं इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। अब देखना यह है कि उमेश डॉ. राजीव भारद्वाज जैसे नाम जो लगातार चर्चा में बने हुए हैं और दूसरी तरफ बाहरी व्यक्ति को टिकट नहीं देने का प्रस्ताव डलवाया जाना बहुत से सवालों को खुद ही पैदा करता है। हालांकि एचपीसीए का स्टेडियम होने के चलते धर्मशाला में धूमल परिवार के साख का सभी को पता है और यही डर कहीं ना कहीं भाजपा के एक बड़े गुट को सता भी रहा है।</p>
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