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फिर शुरू हुआ ‘वीरभद्र-सुक्खू’ वॉर, ‘जीत के लिए वीरभद्र का होना जरूरी नहीं’

पी. चंद |

लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही एक बार फिर वीरभद्र-सु्क्खू वॉर शुरू हो गया है। एक ओर जहां सुक्खू के हटाये जाने पर वीरभद्र ने हाईकमान के फैसले की सराहना की, वहीं उन्होंने प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को सुक्खू का कुनबा करार दिया। उनके इस बयान ने एक बार फिर इन दोनों नेताओं के बीच वॉर को हवा दे दी है और अब सुक्खू ने भी उनके बयानों को अशोभनीय करार दिया है।

सुक्खू ने कहा कि पार्टी में अच्छा काम करने वाले हर नेता का विरोध करना वीरभद्र सिंह की आदत बन गई है। पहले उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत महाजन, फिर विद्या स्टोक्स और विप्लव ठाकुर और उसके बाद कौल सिंह ठाकुर का विरोध किया। वीरभद्र सिंह की आदत रही है कि जब भी चुनाव आते हैं तो पार्टी नेतृत्व के साथ ब्लैकमेलिंग शुरू कर देते हैं। पार्टी हाईकमान पर पूर्व सीएम की टिप्पणी अशोभनीय है। लोकसभा चुनाव में टिकट आवंटन को लेकर वीरभद्र ने हाईकमान के लिए अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया है और उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।

सुक्खू ने कहा कि उन्होंने जिला और ब्लॉक कांग्रेस कमेटियां बनाईं, बूथ स्तर पर संगठन को पहुंचाया, नए और युवा चेहरों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जगह दी। उन्होंने कांग्रेस के कुनबे को बढ़ाया, न कि व्यक्ति विशेष के, इसलिए वीरभद्र उनके भी धुर विरोधी बन गए। वीरभद्र खुद को ही हिमाचल में कांग्रेस मानते हैं, जबकि समय बदल चुका है, कांग्रेस प्रदेश में बूथ स्तर तक मजबूत है। जीत के लिए वीरभद्र सिंह का ही होना जरूरी नहीं। वीरभद्र सिंह कांग्रेस नहीं, कांग्रेस पार्टी का हिस्सा हैं।

सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि पार्टी के आम कार्यकर्ता और पदाधिकारियों को कबाड़ कहना अशोभनीय है। यह वीरभद्र की फितरत बन चुकी है। जबकि, आम कार्यकर्ता पार्टी की जान और रीढ़ की हड्डी होता है। पार्टी के लिए उसके योगदान की कोई कीमत नहीं चुकाई जा सकती। वीरभद्र सिंह ये बताएं, क्या गंगू राम मुसाफिर, चौधरी चंद्र कुमार, हर्ष महाजन, अजय महाजन और रवि ठाकुर भी कबाड़ हैं, जिन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जगह दी गई है। क्या अनेक बार सांसद, विधायक, मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुके नेताओं को संगठन में ओहदा देना गलत है। क्या वीरभद्र सिंह ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों को भी कबाड़ मानते हैं।  

वीरभद्र के नेतृत्व में हर चुनाव हारे

सुखविंद्र सुक्खू ने कहा कि पूर्व कांग्रेस सरकार में वीरभद्र के सीएम रहते कांग्रेस उनके नेतृत्व में हर चुनाव हारी। जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुए तो उन्हें अध्यक्ष बने सिर्फ एक साल हुआ था। प्रदेश में वीरभद्र के नेतृत्व में 2012 में कांग्रेस सरकार बन चुकी थी, फिर वीरभद्र लोकसभा की चारों सीटें क्यों नहीं जिता पाए। उनकी पत्नी मंडी सीट से चुनाव कैसे हार गईं। चुनाव में जनता सरकार की परफार्मेंस पर जनादेश देती है, सरकार वीरभद्र की थी, फिर 2017 में क्यों चुनाव हारे।

शिमला नगर निगम के चुनावों में सरकार होते हुए हार क्यों हुई। वीरभद्र सिंह के गृह विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस नगर निगम के तीन वार्ड कैसे हारी। भोरंज विधानसभा उपचुनाव वीरभद्र सिंह क्यों नहीं जिता पाए। सुक्खू ने कहा कि संगठन तो काम करता रहा, लेकिन सरकार सत्ता के नशे में चूर रही। यही कारण है कि वीरभद्र सिंह छह बार सीएम बनने के बावजूद कभी प्रदेश में कांग्रेस सरकार रिपीट नहीं कर पाए।

राजनीतिक बात का जवाब राजनीतिक तरीके से ही मिलेगा

सुखविंद्र सुक्खू ने कहा कि उम्र के हिसाब से वीरभद्र सिंह आदरणीय हैं, लेकिन जब राजनीतिक बात करेंगे तो जवाब भी राजनीतिक तरीके से ही मिलेगा। बीते लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार कांग्रेस पार्टी या संगठन की नहीं, बल्कि सीधे वीरभद्र सिंह की हुई है। क्योंकि 2014 में लोकसभा के चारों टिकट उनकी मर्जी के थे, 2017 विधानसभा चुनाव में भी साठ टिकटें वीरभद्र ने अपनी मर्जी की लीं। कांग्रेस अध्यक्ष को तो मात्र पांच टिकटे मिलीं। ऐसे में खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि हारा कौन और हार किसकी वजह से कांग्रेस पार्टी की हुई।

संगठन मजबूत होने से वीरभद्र को समस्या

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश में संगठन का मजबूत होना वीरभद्र सिंह की सबसे बड़ी समस्या है। वे कभी चाहते ही नहीं थे कि प्रदेश में कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी हो। इसलिए हमेशा उन्होंने कांग्रेस को अपने से ऊपर प्रदेश में उठने ही नहीं दिया। कांग्रेस को खत्म कर व्यक्ति विशेष का कद बढ़ा बना दिया।

पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने वालों को बनाया चेयरमैन

सुखविंद्र सुक्खू ने कहा है कि वीरभद्र ने पूर्व सरकार में ऐसे लोगों को चेयरमैन बनाया, जिन्होंने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा था। चेयरमैन बनने के बाद भी वे लोग कांग्रेस को मजबूत नहीं कर पाए। बीते विधानसभा चुनाव में उनके बूथ पर 8 से 10 वोट पड़े। सीएम बनने पर वीरभद्र सिंह का काम ही अपने कुनबे और पार्टी विरोधी नेताओं को आगे बढ़ाने का रहा है