मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस हाईकमान को सीधे लफ्ज़ों में खुद को हिमाचल का बॉस बता दिया है। मगर, ऐसा नहीं है कि उन्होंने इस तरह के तेवर पहली बार दिखाए हों। इससे पहले भी वीरभद्र सिंह ने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की उपेक्षा की है और अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है। समाचार फर्स्ट को 2006 की एक दैनिक अख़बार में छपी न्यूज़ हाथ लगी है। पंजाब केसरी, तारीख 02-11-2006 में छपे एक न्यूज़ में बताया गया है कि कैसे वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला की रैली के बाद सोनिया गांधी से टकराव मोल ले लिया।
अख़बार के मुताबिक धर्मशाला की रैली में सोनिया गांधी ने कहा कि कांगड़ा जिला के लोग अक्सर खुद को उपेक्षा का शिकार मानते हैं। लेकिन, उनकी शिकायत को दूर करना मुख्यमंत्री की प्राथमिकता होनी चाहिए। सोनिया गाांधी के इस भाषण के बाद अगले ही दिन वीरभद्र सिंह ने एक प्रेस-कॉन्फ्रेंस करके उन्हें चुनौती दे दी। उन्होंने कहा कि, ऐसा कुछ भी नहीं है…भेदभाव या उपेक्षा का प्रश्न ही नहीं उठता। किसको मंत्री बनाना है या नहीं बनाना है यह मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में है।
गौरतलब है कि उस वक़्त मंच पर तत्कालीन सांसद चौधरी चंद्र कुमार को जगह नहीं दी गई थी। कांगड़ा के सांसद होने के बावजूद सोनिया गांधी का स्वागत वीरभद्र सिंह की पत्नी और तत्कालीन सांसद प्रतिभा सिंह ने किया था। उस दौर में चंद्र कुमार ने स्टेज भी साझा नहीं किया था।
हालांकि, बीते महीने भी धर्मशाला की रैली में वीरभद्र सिंह ने अपने ही कैबिनेट के एक वरिष्ठ सहयोगी मंत्री को स्टेज साझा नहीं करने दिया था। तब रैली राहुल गांधी की थी। इस बात से नाराज मंत्री ने दोबारा शिंदे के आगमन पर धर्मशाला रैली का रुख भी नहीं किया।
कुल मिलाकर अगल वीरभद्र सिंह की राजनीति की समीक्षा करें तो अक्सर वह दबाव की राजनीति करते दिखाई देते हैं। साथ ही साथ अपने ही दल के भीतर जोड़-तोड़ का ट्रेंड भी उनके सिर जाता दिखाई देता है। आज एक दशक बाद फिर से वीरभद्र सिंह सोनिया गांधी के ही सामने आकर खड़े हैं। अंदाज बिल्कुल 2006 और 2012 वाला है। एक बार फिर कांग्रेस हाईकमान को उसी दर्ज पर जताने की कोशिश हो रही है कि हिमाचल कांग्रेस में अगर कोई सुप्रीम है तो वह वीरभद्र सिंह हैं।