हिमाचल प्रदेश जिसका गठन 25 जनवरी 1971 को हुआ था. तब से लेकर आज तक अगर बात करें तो इस प्रदेश में राजपूतों की संख्या सबसे अधिक है. वहीं, अगर फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो इसमें भी बहुल संख्या राजपूतों की है. उसके बाद ब्राह्मण और तीसरे नंबर पर ओबीसी आते हैं. इसमें 45 % राजपूत, 16% अन्य पिछड़ा वर्ग, 24% अनुसूचित जातियां और 14% ब्राह्मण हैं.
अगर स्वर्ण जातियों की बात करें तो इसमें 59% है जो किसी भी पार्टी को सत्ता दिला सकती हैं. इसी कारण इस विधानसभा क्षेत्र से आज तक अगर बात करें तो केवल राजपूतों और ब्राह्मणों को लुभाने के लिए या तो राजपूत चेहरा या ब्राह्मण चेहरा ही उतारा जाता था. अगर 1978 के बाद कि बात करें तो बिक्रम ठाकुर के बाद से कांग्रेस से सुजान सिंह पठानिया तो भाजपा से डॉ राजन सुशांत को टिकट दी जाती थी.
इस बीच केवल भाजपा की ओर से केवल एक बार जब डॉ राजन सुशांत लोकसभा से चुने गए थे उस समय बलदेव चौधरी को टिकट दिया गया था. और जब डॉ राजन सुशांत को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया तो भाजपा ने एक बार बलदेव ठाकुर तो एक बार कृपाल परमार को टिकट देकर जातीय सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की. लेकिन अगर आज की स्थिति की बात करें तो दोनों ही मुख्य दल भाजपा और कांग्रेस ने राजपूत वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दी है ।
दरसल दोनों मुख्यदलों ने अपना दाव राजपूत वर्ग पर खेला है. लेकिन अब यह देखना है कि क्षेत्र में दूसरे स्थान पर पाए जाने वाले ब्राह्मण वोटर को और बाकी के अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा बर्ग के वोटरों को लुभाने के लिए पक्ष-विपक्ष क्या करते हैं, यह भी देखने योग्य होगा.
अगर बात क्षेत्र की करें तो कुछ लोगों में ब्राह्मण समुदाय की अनदेखी की भी बाते सुनी जा रही हैं. अगर मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस ने इसका तोड़ नहीं निकाला या पकड़ ना बना पाए तो ऐसा ना हो कि यह समुदाय दोनों ही दलों से किनारा करके किसी अन्य उम्मीदवार पर रहम ना कर दें. क्योंकि इस बार भाजपा से निष्कासित डॉ राजन सुशांत भी मैदान में हैं और वे यह कार्ड खेलने से कोताही नहीं बरतेंगे. अब नतीजे क्या रहेंगे ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन अब अगर ब्राह्मण उम्मीदवारों की बात करें तो एक तरफ डॉ राजन सुशांत तो दूसरी ओर पंकज दर्शी हैं जो कि दोनों ही ब्राह्मण समुदाय से हैं. लेकिन इसके बावजूद भी फतेहपुर की जनता जाति विशेष महत्व ना देती हुई देखी गई है.
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