आज भले की किसी को यकीन न आए लेकिन जिला शिमला के धामी क्षेत्र में दिपावली पर्व के अगले दिन पत्थर का मेला मनाने की परंपरा है। राजधानी से लगभग 30 किलोमीटर दूर धामी के हरलोग क्षेत्र में प्राचीनकाल से मनाए जाने वाले इस मेले की खासियत यह है कि यहां दो समुदाय के लोग एक दूसरे पर पत्थर मारते हैं। ये पत्थर मारने का सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक कि एक समुदाय पत्थर लगने के बाद लहूलुहान न हो जाए।
किसी जमाने में नरबलि से ये प्रथा शुरू हुई थी। उसके बाद पशुबलि भी यहां दी जाती थी लेकिन वक़्त के साथ अब बलि को पत्थरों के खूनी खेल में तब्दील कर दिया है। दो पक्षों के बीच तब तक पत्थर बरसाए जाते हैं जब तक कि एक पक्ष के पत्थर लगने के बाद खून न निकल आए। एक पक्ष के शरीर से खून निकलने के बाद राज परिवार के लोग इस खूनी खेल के खत्म होने की घोषणा करते हैं। भद्रकाली के मंदिर में खून का टीका किया जाता है।
आज भी दोनों समुदायों के बीच जमकर पत्थर चले। पत्थर के इस मेले में करीब आधा घंटा तक कटेडू और जमोगी राजवंश के लोगों ने एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए। राज परिवार के साथ कटैड़ू और तुनड़ु, दगोई, जठोटी खुंद के लोग शामिल थे, जबकि दूसरी टोली में जमोगी खुंद के लोग शामिल थे। आसपास के स्थानीय लोग मां भद्रकाली (सती) के स्मारक के पास एकत्रित हुए।
दोनों टोलियों द्वारा पूजा-अर्चना के बाद पत्थर का खेल शुरू हुआ। सिर से खून निकलने के बाद ही पत्थरों की बरसात बंद की गई। इस खून से मां भद्रकाली( सती) को तिलक लगाया गया। खेल खत्म होते ही मंजर बिलकुल बदल गया कुछ देर पहले जो लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसा रहे थे अगले ही पल में गले मिले व नाचने गाने लगे। दूर दराज कर लोग भले ही इस मेले में मनोरंजन के लिए आते है, लेकिन इन दो समुदायों के लिए ये मेला आस्था से जुड़ा हुआ है जिसका निर्वाह सैंकड़ो सालों से किया जा रहा है।