हिमाचल का एक ऐसा गांव जहां सदियों से नहीं मनाई जाती दीपावली

<p>एक तरफ जहां दीपावली पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। दीपावली का दीपों का त्यौहार है। दीपावली का त्यौहार भारत के सभी धर्मों के द्वारा बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है लेकिन दूसरी तरफ जिला हमीरपुर के उपमंडल भोरंज में एक गांव ऐसा भी है जहां पर सदियों से दीपावली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है।</p>

<p><span style=”color:#c0392b”><strong>आखिर क्यों नहीं मनाया जाता यहां दीपावली का त्यौहार</strong></span></p>

<p>यहां पर लोगों से बात करने पर पता चला कि यहां पर दीपावली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है इसके पीछे गांव के बुजुर्गों ने बताया कि यहां पर बरसों पहले एक औरत सती हुई थी। जिसका पति फौज में नौकरी करता था। दीपावली के दिन वह अपने ससुराल सम्मू गांव से अपने मायके जा रही थी। उसे किसी ने यह नहीं बताया कि उसके पति की मौत हो चुकी है जब बह मायके जा रही थी तो रास्ते में उसे अपने पति की मौत का समाचार प्राप्त हुआ जब वहां से कुछ लोग उसके पति के समान आदि को वापस देने उसके घर आ रहे थे। जब उससे रास्ते में ही अपने पति की मौत की सुनी तो उसने अपने छोटे बच्चे सहित वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए।</p>

<p>वहीं, पर सती हो गई फिर उसने किसी के माध्यम से अपने गांव में यह संदेश भेजा कि मैं दिवाली के दिन यहां पर सती हो गई हूं और आज के बाद कोई भी इस गांव में दीपावली नहीं मनाएगा। तब से लेकर यहां पर कोई भी गांव वासी दीपावली नहीं मनाता है। उपमंडल भोरंज के डेरा परोल के पास गासियां नाम की जगह पर यह सती हुई थी। जहां पर यदि सम्मू गांव के लोग आज भी वहां पर गुजरते हैं तो मान्यता अनुसार वहां पर पत्थर फेंकने की मान्यता है।</p>

<p><span style=”color:#8e44ad”><strong>दीपावली मनाने का किया गया कई बार प्रयास</strong></span></p>

<p>ज्यों-ज्यों समय बीतता गया तो गांव के कुछ लोगों ने दीपावली मनाना शुरू किया। जब गांव के एक व्यक्ति ने दीपावली मनाई तो उसके घर में आग लग गई और उसका घर जलकर राख हो गया। इसके बाद भी कई लोगों ने दीपावली मनाने का प्रयास किया। जब भी यहां पर दीपावली मनाने का प्रयास किया गया तो गांव में कोई गंभीर बीमारी फैल गई जिससे गांव के लोगों की सुख शांति भी छिन्न गई। इतनी घटनाएं होने के बाद अब गांव के लोग दीपावली नहीं मनाते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि गांव के लोग आज भी अपने अपने घरों में 6 महीने या 1 साल में सती को बार दिया जाता है। उस दिन उसका पूजन भी किया जाता है, उसकी उसके पति और बच्चे की लोगों ने घरों में मूर्तियां बनाई हुई है और उस दिन पकवान बनाकर उनको भोग लगाया जाता है।</p>

<p>गांव के अन्य लोगों ने बताया के अब हम भी यह त्योहार नहीं मनाते हैं क्योंकि जब भी यहां पर दीपावली मनाने की कोशिश की गई यहां पर कोई न कोई अनहोनी घटना होती है। इसलिए पुरानी परंपरा आज भी यहां पर कायम है। उधर ग्राम पंचायत प्रधान भोरंज गरीब दास ने बताया कि सम्मू गांव में यह मान्यता है कि यहां पर दीपावली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। सदियों से यहां पर दीपावली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। अतः गांव में आज भी यह प्रथा प्रचलित है।</p>

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