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बालक नाथ कैसे बने दियोटसिद्ध बाबा बालक नाथ, उत्तर भारत के करोड़ों लोगों की आज भी है आस्था

पी. चंद |

सिद्ध बाबा बालक नाथ एक हिन्दू देव स्थान है। यहां पर हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर एवं अन्य उतर भारतीय राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस स्थान को दियोटसिद्ध के नाम से जाना जाता है। आज से एक महीने तक यहां बाबा जी के नाम के मेले शुरू हो रहे  हैं।

दियोटसिद्ध हमीरपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर हमीरपुर और बिलासपुर जिला की सीमा पर चकमोह गांव के दियोटसिद्ध नामक क्षेत्र में स्थित है। धौलगिरी पर्वत पर एक प्राकृतिक गुफा में बाबा जी की पवित्र प्रतिमा स्थापित है। इस पवित्र स्थान पर साल के दौरान कभी भी आसानी से जाया जा सकता है। रविवार को बाबा जी के शुभ दिन के रूप में माना जाता है। इसलिए आम तौर पर सप्ताहांत पर और विशेष रूप से रविवार को यहां पर बहुत भीड़ होती है। हर साल यहां पर 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चैत्र मास के मेले लगते हैं।

नाथों में गुरु गोरखनाथ का नाम आता है। इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अंश अवतार ही माना जाता है। श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुंचे थे।

कहा जाता है कि शाहतलाई में ही रहने वाली निसंतान माई रत्नों ने बाबा जी को अपना धर्म का बेटा बनाया। बाबा जी ने 12 वर्ष माई रत्नों की गऊएं चराईं। एक दिन माता रत्नों के रोटी का ताना मारने पर बाबा जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं थी। इस घटना की जब आस-पास के क्षेत्र में चर्चा हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ को भी बाबा के चमत्कार का पता चला  तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ बहुत क्रोधित हुए।

कहा जाता है कि बाबा जी के इंकार करने पर जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए जहां आजकल बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है। बताया जाता है कि जब बाबा जी गुफा में अलोप हुए तो यहां एक (दियोट) दीपक जलता रहता था जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी। इसलिए लोग बाबा जी को, ‘दियोट सिद्ध’ के नाम से भी जानते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरातन चिमटा भी है।