रेणुका तीर्थ हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में आता है। यहां सुंदर रमणीक, पवित्र रेणुका झील और परशुराम तालाब है। यहां पर भगत गढ़ स्नान करते हैं। कार्तिक शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक यहां मेले का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। काफी लोग दूरदराज से आते हैं। रेणुका झील का जल निर्मल है इसमें बड़ी-बड़ी मछलियां तैरती रहती हैं। अक्सर भगत गण इन्हें आटे की गोलियां खिलाते देते हैं। यहां तेज चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। रेणुका झील की परिक्रमा मैं सहस्त्रधारा नाम की एक जगह आती है जो आज भी धाराओं से बह रही है।
कहावत है कि जब माता रेणुका जल में समाई तो भगवान परशुराम ने अपनी माता से विनम्र प्रार्थना की थी। प्रभु की प्रार्थना से माता प्रकट हुई और वात्सल्य है भाव से उसकी दुद्धी से सहस्रधारा निकल पड़ी। अपने पुत्र परशुराम को समस्त विधाओं का उपदेश देकर और हर प्रतिवर्ष उनकी देव धणी एकादशी के दिन मिलने का वादा करके उसी सहस्रधारा मैं समा गई जो कि आज मां के दूध के रूप में माना जाता है। श्रद्धालु भक्त आज भी उस जल को मां का दूध समझ कर अपने घर में प्रसाद के रूप में ले जाते हैं।
रेणुका झील जो चारों ओर से पर्वतों से घिरी हुई है। उसे और आकृष्ट बनाने के लिए वहां नौका विहार सिंह बिहार इत्यादि शुरू कर दिया गया। भगवान परशुराम का जन्म स्थली जामू कोटि सिंधु वन सिरमौर राज्य में है। इनके जन्म से पहले ही वहां देवी-देवताओं का निवास होने लगा। राम सरोवर गिरी गंगा नदी तट के पास महा ऋषि जगदेव मिनी जी का बेड़ा आंगन था जिसमें आजकल बेडवान के नाम से जाना जाता है। उसे देवी देवता पहले से ही वहां पर खूब सवारने लगे क्योंकि भगवान परशुराम रूद्र नारायण के अंश अवतार होने से विशेष प्रभावी अवतार माने गए हैं। जिससे उत्सव मनाने के लिए इंदिरा दी सर्व देवता वहां पर उपस्थित हुए जो कि आज भी देव शीला और देव खाली के नाम से जाना जाता है।
उस स्थान पर आज भी प्रतिमा और उनके द्वारपाल गुगा पीर की माड़ी उपस्थित है। साथ में भगवान की आदम कार मूर्ति भी प्रतिष्ठित है। वहां से ही मेला रेणुका का शुरू होता है। जहां भगवान परशुराम ने दिग्विजय के बाद यज्ञ किया था। उस यज्ञ कुंड को आज भी परशुराम ताल के नाम से जाना जाता है। यहां पर आज भी रेणुका मत बना हुआ है और नारायण की ईस्ट शिवा तथा दुर्गा के मंदिर भी है। भगवान परशुराम का प्राचीन भव्य मंदिर भी है। अब सरकार ने एक विकास बोर्ड का गठन भी किया है जिसके द्वारा जिला प्रशासन ने एक और भव्य मंदिर बनाया है। उनमें दसों अवतारों की संगमरमर की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित की है।
वहीं सिंध वन क्षेत्र सप्त ऋषि का सिरमौर श्री प्रभावी अवतार की राह देखने के लिए खुशियां मनाने के लिए और उनका जन्म उत्सव मनाने के लिए पहले ही तैयारी प्यारी की जाती है। इसी प्रकार यहां आश्रम उत्तर भारत का एक प्रमुख स्थान जामू कोटि के अंतर्गत रेणुका के नाम से विख्यात है।
रेणुका का मंत्र
एकत्व शक्ति पुरुष प्रकृति ऐश्वर्या माया मन चित्तवृत्ति राजेश्वरी मां
भुवनेश्वरी मां चराचरस्य जगत धरित्री
रेणुकेत्वाम् जगत माता रेणुकेत्व जगत पिता
रेणुकेत्वाम् जगत धात्री, रेणुकाये नमो नम:
प्रसिद्ध तीन आश्रम
रेणुका झील के पास तीन आश्रम विख्यात है जोकि जूना अखाड़ा गायत्री आश्रम इस आश्रम के मुख्य श्रीमद् परमहंस महामंडलेश्वर स्वामी दयानंद भारती, महा निर्माण अखाड़ा आश्रम सन्यासी आश्रम। यहां का क्षेत्र मंदिर परिसर में आता है जो कि श्रद्धालुओं के लिए आसानी से भोजन के व्यवस्था समय पर होती है। रात्रि ठहराव भी आसानी पूर्वक करवाया जाता है।