हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है और इस देवभूमि में देवताओं के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। इन देवताओं में लोगों की अटूट आस्था है। इन्हीं में से एक मंदिर है देव पशाकोट। पशाकोट देव मंडी जिला की चौहार घाटी के सर्वमान्य देवता माने जाते हैं। मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए एक अटूट विश्ववास के साथ चौहारवासी हमेशा ही देवता की शरण में जाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि देवता उनकी सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना पूरी करते हैं।
मंदिर निर्माण के बारे में कहा जाता है कि देव पशाकोट के आदेश पर इस निर्माण का कार्य कारीगरों को खाली पेट ही करना पड़ता था। खाना खाने के बाद निर्माण कार्य करने की इजाजत नहीं थी। मंदिर के मुख्य दरवाजे पर उकेरे गए भगवान शिव और हनुमान के चित्रों की भाग-भंगिमा में इन शक्तियों के साक्षात्कार रूप का आभास होता है।
देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर देवगढ़ गांव में है। टिक्कन से ही यहां के लिए सड़क जाती है। मंदिर निर्माण की पैगोड़ा शैली में बना यह मंदिर एक बेहद खूबसूरत स्थान पर स्थित है। काष्ठ शैली से निर्मित देवता के नए मंदिर को देवदार और कायल की लकड़ी से बनाया गया है। यहां पास में एक जलधारा बहती है जो यहां की खूबसूरती को और बढ़ा देती है।
मान्यता है कि देव पशाकोट सांप का रूप धारण करके नदी से होके अपने ढोल नगाड़ों के साथ मराड़ जाते हैं। हर तीन साल बाद मराड़ मेले का आयोजन किया जाता है। मराड़ में एक फटा हुआ पत्थर है जिस पर सांप दिखाई देते हैं। जब देव पशाकोट मराड़ से नदी में से ढोल-नगाड़ों के साथ टिक्कन वापिस आते हैं तो स्थानीय लोगों को ढोल-नगाड़ों की ही आवाज सुनाई देती हैयह मंदिर टिक्कन पुल के नजदीक करीब एक किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह बहुत ही रमणीय और रोमांचक जगह है।