हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है।और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलता है कुल्लू के दशहरे में जहां सैकण्डों की संख्या में देवी देवता एक जगह पर आ कर भक्तों को दर्शन देते हैं । कुल्लू घाटी में दशहरे के पर्व का संस्कृति एवं ऐतिहासिक बहुत महत्व है। हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में दशहरा एक दिन का नही ब्लकि सात दिन का त्यौहार है। इसकी एक खास बात यह है कि जब पूरे भारत में दशहरे का समापन्न रावण मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले जला किया जाता है तब कुल्लू का दशहरा आरम्भ होता है । दशहरे में घाटी के सभी देवी देवता सैकण्डों की संख्या में भाग लेते है और सभी देवी देवताओं की इस महाकुम्भ में अहम भूमिका रहती हैं।
इन्ही में से एक है पर्यटन नगरी मनाली की आराध्य देवी माता हिडिम्बा । माता हिडिम्बा की दशहरे में अहम भूमिका रहती है । माता हिडिम्बा को राजघराने की दादी भी कहा जाता है। आज देवी हिडिम्बा अपने कारकूनों वह हरियानों के साथ दशहरे में भाग लेने के लिए अपने स्थान मनाली से निकल पड़ी हैं । जगह-जगह पर भक्तों की और से देवी का स्वागत किया जा रहा है।
कल सुबह देवी हिडिम्बा जब कुल्लू पंहुचेगी तो वंहा पर देवी का स्वागत किया जायेगा और फिर वंहा पर भगवान रघुनाथ जी की छडी माता को लेने के लिए रामशिला नामक स्थान पर लाई जायेगी जंहा से फिर माता भगवान रघुनाथ के मन्दिर के प्रस्थान करेंगी माता के वंहा पर पंहुचने पर पूरे रिति रिवाज से माता की पूजा अर्चना की जायेगी। अधिक जानकारी देते हुए माता के पुजारी ने बताया कि आज मनाली से माता दशहरे के लिए रवाना हो गई हें और कल सुबह माता दशहरा उत्सव में भाग लेगी और अगले सात दिनों तक कुल्लू के ढालपुर में स्थित अपने अस्थायी शिविर में रहेंगी । और दशहरे के समापन्न के बाद ही माता अब अपने स्थायी शिविर में वापस आयेंगी ।