आज यानी दिवाली के दूसरे दिन गोरवर्धन पर्व मनाया जाता है. कल दिवाली थी और आज 5 नवंबर को गोवर्धन पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है. गोवर्धन में गायों का विशेष श्रृंगार कर उनकी पूजा भी की जाती है.
लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं और फिर फूल, धूप, दीप आदि से उसकी पूजा करते हैं. इस दिन घरों में तरह-तरह के पकवान भी मनाए जाते हैं.
मान्यता के अनुसार एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था. इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने लीला रची. एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे. यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं. तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?
यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि, भगवान इंद्र देव की कृपा हो तो अच्छी बारिश होती है जिससे हमारे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारे पशुओं को चारा मिलता है. माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, अगर हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वहीं चारा चरती हैं और वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से ही बारिश होती है.
भगवान कृष्ण की बात मानकर गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और ब्रज के लोगों से बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासी घबरा गए. तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठाया और सभी लोग इसके नीचे आकर खड़े हो गए.
भगवान इंद्र ने 7 दिनों तक लगातार बारिश की और 7 दिनों तक भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को उठाए रखा. भगवान कृष्ण ने एक भी गोकुल वासी और जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचने दिया, ना ही बारिश में भीगने दिया। तब भगवान इंद्र को अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला कोई साधारण मनुष्य तो नहीं कर सकता है. जब उन्हें यह बात पता चली कि मुकाबला करने वाले स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं तो उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना मांगी और मुरलीधर की पूजा करके उन्हें स्वयं भोग लगाया और माना जाता है तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई.