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शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का है विशेष महत्व, आज के दिन चन्द्रमा होता है बहुत बलशाली

रमित शर्मा |

शरद पूर्णिमा पर खीर खाने की प्रथा है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की अद्भुत रोशनी से जो ऊर्जा निकलती है जोकि अमृत समान होती है। इस रात चंद्रमा की रोशनी में रखी गई खीर का विशेष महत्व माना गया है। इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

अश्विन मास की शरद पूर्णिमा इस बार 13 अक्टूबर, रविवार को है। इस बार यह अमृतयोग और सर्वार्थ सिद्धि योग में आ रही है। रविवार को पूर्णिमा का आरंभ रात 12 बजकर 36 मिनट से है।

शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त

शरद पूर्णिमा तिथि: रविवार, 13 अक्‍टूबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्‍टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 14 अक्‍टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक

साल में एक बार आने वाली शरद पूर्णिमा पर खीर खाने को फलदायी माना जाता है। इसके पीछे वैज्ञानिक और पौराणिक दोनों मान्यताएं हैं।

क्या कहता है धर्म?

मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा के प्रकाश में अमृत समान गुण होते हैं, इसलिए इस रात खीर बनाकर चंद्रमा के शीतल प्रकाश में रखकर खाने का रिवाज है। लेकिन इससे पूर्व इस खीर को भगवान शिव को अवश्य अर्पित करना चाहिए। इस प्रसाद वाले खीर को छत पर चंद्रमा के प्रकाश में रखें और फिर इसे परिवार के सभी सदस्यों को ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। व्यापार, करियर में बढ़ोतरी होती है साथ उस परिवार के लोगों को कभी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता।

क्या हैं विज्ञान के तर्क

वहीं अगर इस अवसर पर खीर खाने के वैज्ञानिक कारणों से देखें तो पाएंगे कि दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है जो कि चांद की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। यही कारण है कि इस दिन चांदी के पात्र में खुले आसमान के नीचे खीर बनाने और इसे ग्रहण करने की मान्यता है।