हिमाचल एक देवभूमि है और यहां हर जगह देवी देवताओं के मंदिर देखने को जरूर मिलते हैं, जो स्थानीय लोगों की आस्था का प्रतीक होते हैं। हिमाचल की बात करें तो जैसे जैसे आप सफर करेंगे वैसे वैसे ही हर गांव में अपने अपने देवी देवताओं का मंदिर देखने को जरूर मिलेंगे। ऐसी ही मान्यता है जखौली माता मंदिर की जो कि मां भगवती भद्रकाली माता के नाम से प्रसिद्ध है:-
जिला सोलन में अर्की-कुनिहार सड़क मार्ग पर हनुमान मंदिर से करीब 600 मीटर की दूरी पर जखौली गांव में मां भगवती भद्रकाली का प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है । यह मंदिर जखौली देवी के नाम से जाना जाता है । किवंदन्ति के अनुसार कहा जाता है अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मन्दिर की स्थापना की थी, लेकिन वर्तमान मंदिर का प्रारूप सिद्धराज ने सन 1745 के आसपास तैयार किया था । जखोली मन्दिर के बारे में एक दन्त कथा भी प्रचलित है कि जब मां भगवती स्वर्गलोक के लिए सीढ़ियों को बना रही थी तो उस समय एक ग्वाले ने यह देखकर शोर मचाना शुरू कर दिया थ। उसी समय मां भगवती ने उस ग्वाले को अपने चरणों के नीचे ले लिया था। वह सीढ़ियां आज भी प्रत्यक्ष रूप से मन्दिर में देखी जा सकती है ।
सन 1991 तक हम इस मंदिर को पुराने स्वरूप में ही देखते थे जिसके पुनर्निर्माण का बीड़ा बातल निवासी सरस्वती देवी धर्मपत्नी स्वर्गीय केशव राम पाठक ने उठाया था। जखौली मंदिर परिसर के विस्तारीकरण के लिए विकास में जनसहयोग, श्रद्धालुओं व स्थानीय पंचायत देवरा की अहम भूमिका रही है, जिसमें अब तक करीब 25 लाख रुपये की धनराशि से पुराने मन्दिर को नया स्वरूप दिया गया है । वहीं सरायों व बड़े हॉल का निर्माण हुआ है जहां पर सैंकड़ो लोग धूप व बारिश में भी एक साथ पूजा अर्चना का कार्य आराम से कर सकते है।
मां भद्रकाली देवी सोलन के अलावा अन्य जिलों व राज्यों की भी कुलदेवी है। जिसके चलते मां के भक्त सालभर अपनी कुलजा के दर्शन के आते रहते हैं । मां जखौली देवी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करती और उनकी मनोकामना को पूर्ण करती है । अक्टूबर माह में होने वाले नवरात्रों के दौरान दुर्गा अष्टमी को मेले का आयोजन भी किया जाता है । जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं । राजाओं के समय से जखौली देवी मंदिर की देखरेख व पूजा अर्चना का कार्य भट परिवार करता आ रहा है । जिसकी चौथी पीढ़ी आज इस कार्य को बखूबी सम्भाल रही है।
इस मंदिर के साथ ही एक और ऐतिहासिक स्थल शिव मंदिर भी है कहा जाता है कि जब शिव गुफा के पास राजा विश्राम कर रहे थे और उन्हें प्यास लगी तो एक नट ने अपनी साधना के बल से उसी स्थान पर पानी का चश्मा निकाल दिया लेकिन फिर बन्द न कर देने की आशंका से उस नट की गर्दन को काट कर वहीँ एक शिला के नीचे दबा दिया था। वह शिला आज भी प्रत्यक्ष रूप से उसी तरह विद्यमान है। कभी-कभी हैरानी भी होती है कि बातल से जखौली गांव तक की एक किलोमीटर लंबी व पांच सौ फीट ऊंची पहाड़ी में आखिर कितना बड़ा पानी का भंडारण है जो 4 से 6 इंच लगातार बिना रुके बहता जा रहा है ।जखौली मन्दिर सोलन ज़िला,प्रदेश व बाहरी राज्यो के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।