वैसे तो अमरनाथ यात्रा को सबसे मुश्किल माना जाता है, लेकिन किन्नौर में तिब्बत सीमा के पास स्थित किन्नर कैलाश की यात्रा को भी कम मुश्किल नहीं है। कहते हैं कि इस यात्रा पर जाने की हिम्मत इंसान सिर्फ एक बार ही जुटा पाता है। तिब्बत स्थित मानसरोवर कैलाश के बाद किन्नर कैलाश को ही दूसरा बड़ा कैलाश पर्वत माना जाता है। सावन का महीना शुरू होते ही हिमाचल की खतरनाक कही जाने वाली किन्नर कैलाश यात्रा शुरू हो जाती है।
आम लोगों के लिए निषेध इस क्षेत्र को 1993 में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था, जो 19,849 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। 1993 से पहले इस स्थान पर आम लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध था। यहां की यात्रा बेहद जोखिमपूर्ण है, इसके चलते यहां आना आम आदमी के लिए बैन था। यहां 79 फीट ऊंचे चट्टान को हिंदू धर्म वाले शिवलिंग मानते हैं, लेकिन यह हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए समान रूप से पूजनीय है। दोनों समुदायों के लोगों की इसमें गहरी आस्था है।
किन्नर कैलाश को हिमाचल का बदरीनाथ भी कहा जाता है
इस स्थान को भगवान शिव का शीतकालीन प्रवास स्थल माना जाता है। किन्नर कैलाश को हिमाचल का बदरीनाथ भी कहा जाता है और इसे रॉक कैसल के नाम से भी जाना जाता है। इस शिवलिंग की परिक्रमा करना बड़े साहस और जोखिम का कार्य है। कई शिव भक्त जोखिम उठाते हुए स्वयं को रस्सियों से बांध कर यह परिक्रमा पूरी करते हैं। पूरे पर्वत का चक्कर लगाने में एक सप्ताह से दस दिन का समय लगता है। किन्नर कैलाश पर प्राकृतिक रूप से उगने वाले ब्रह्म कमल के हजारों पौधे देखे जा सकते हैं।
रंग बदलता है यहां का शिवलिंग
शिवलिंग की एक चमत्कारी बात यह है कि दिन में कई बार यह रंग बदलता है। सूर्योदय से पूर्व सफेद, सूर्योदय होने पर पीला, दोपहर को यह लाल हो जाता है और फिर पीला, सफेद होते हुए शाम को काला हो जाता है। क्यों होता है ऐसा, इस रहस्य को अभी तक कोई नहीं समझ सका है। किन्नौरवासी इस शिवलिंग के रंग बदलने को किसी दैविक शक्ति का चमत्कार मानते हैं, कुछ बुद्धिजीवियों का मत है कि यह एक स्फटिकीय रचना है और सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पड़ने के साथ ही यह चट्टान रंग बदलती नज़र आती है।