मकर संक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाई जाती है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाई जाती है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल औऱ आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। लेकिन मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है।
सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। हिमाचल, हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बेटियां घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे(बेटे) के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है।
कब क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति
इस बार मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन श्रवण नक्षत्र में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से ध्वज योग बन रहा है। यह खास संयोग कई राशियों के लिए शुभ परिणाम लेकर आएगा। इस साल 14 जनवरी को मकर राशि में सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर प्रवेश करेंगे।
मकर संक्रांति मनाने का महत्व
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इसीलिए इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। राशि बदलने के साथ ही मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है वहीं, मकर संक्रांति के दिन से ही खरमास की समाप्ति और शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। मकर संक्रांति में सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण तक का सफर महत्व रखता है। मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण काल में ही शुभ कार्य किए जाते हैं। सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है तब इसे उत्तरायण कहते हैं। वहीं, जब सूर्य बाकी राशियों सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृच्छिक और धनु राशि में रहता है, तब इसे दक्षिणायन कहते हैं।