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बिलासपुर का मार्कंड़य मंदिर, यहां झरने में स्नान किए बिना अधूरी रहती है चार धाम की यात्रा

पी.चंद |

देवभूमि हिमाचल में देवी देवताओं के कई रहस्य छिपे हुए हैं। जो इस भूमि को गूढ़ आस्था का केन्द्र बना देती है। ऐसा ही एक मंदिर हिमाचल के बिलासपुर जिले में महर्षि मार्कंडेय की तपोस्थली मार्कंड है।  माना जाता है कि यहां स्नान किए बिना चार धाम की यात्रा अधूरी रहती है। इस तपोभूमि के बारे में कहा जाता है कि यहां शिव भगवान प्रकट हुए थे उसी जगह झरना फूट पड़ा। इसी झरने के पानी में स्नान किया जाता है। स्नान के बाद ही चार धाम की यात्रा को पूर्ण माना जाता है। बैसाखी के पर्व पर यहां काफी संख्या में लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं।

पौराणिक कथा के मुताबिक मृकंडु ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र रत्न का वरदान दिया। लेकिन वरदान के साथ उन्होंने पुत्र के अल्पायु होने का भी जिक्र किया। इससे पिता मृकंडु चिंताग्रस्त रहने लगे। बालक मार्कंडेय कुशाग्र बुद्धि होने के साथ-साथ पितृभक्त भी थे। मार्कंड़य ने पिता के मन की बात जानकर चिंता से मुक्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या की।

जब उनकी आयु 12 वर्ष होने में केवल तीन दिन शेष रह गए, तो उन्होंने रेत का शिवलिंग बनाया और शिव की तपस्या में लीन हो गए। यमदूत उनके प्राण हरण करने के लिए आए, लेकिन जब वह बाल तपस्वी की ओर बढ़ने लगे तो रेत के शिवलिंग में से आग की लपटें निकलीं। हारकर यमदूत चले गए और यमराज को सारा हाल सुनाया। स्वयं यमराज जब वहां आए तो मार्कंडेय जी ने शिवलिंग को बांहों में पकड़ लिया। शिवलिंग में से शिव प्रकट हुए तथा उन्होंने यमराज को वापस यमपुरी जाने का आदेश दिया।

ऐसा माना है कि यह घटना बैसाखी की पूर्व संध्या में ही घटित हुई थी। जिस स्थान पर शिव प्रकट हुए। वहां पानी का झरना फूट पड़ा, जिसे आज मार्कंडेय तीर्थ के नाम से जाना जाता है। बैसाखी को यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आकर बह्म मुहूर्त से दिन भर पवित्र स्नान करते हैं।