प्रदेश के सबसे बड़ा जिला कांगड़ा, मंडी और हमीरपुर के साथ कई जिलों में सैर उत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। सैर पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। सुबह से लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और बड़े-बुजुर्गों का पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
सैर पर्व का इतिहास
पुराने जमाने में बरसात से उत्पन्न हुई बीमारियों से निपटने के लिए सुविधा ना के बराबर थी। भारी बरसात के चलते वैध तक पहुंचना भी असंभव होता था। इसलिए लोग घरों में ही कैद रहते थे जिससे किसी तरह की कोई बीमारी ना हो और सुरक्षित रहे।
बरसात का सीजन खत्म होने के बाद लोग के मिलने-झुलने का सिलसिला शुरू होता था और इसी मेल-मिलाप को सैर या सायर का नाम दिया गया। साथ ही लोग हर विध्न और बाधा से बचाने के लिए प्रकृति का धन्यवाद करते थे।
इस पर्व के बाद ही लोग अपनी लंबी यात्राएं शुरू करते हैं। यहां तक की जो नई दुल्हनें काला महीने में मायके गईं होती हैं वो भी सैर के साथ ससुराल लौटतीं है। और साथ ही आज ही दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना के दौरान रक्षाबंधन पर बांधी गई राखी भी उतार कर टोकरी को समर्पित की जाती है।
टोकरी में हर नए फसल का पौधा और फल रखा जा है और हर एक परिवार खुशहाली की कामना करता है और सैर की टोकरी को गौशाला में घुमा कर पानी में प्रवाह किया जाता है। एक और खास बात ये है कि इस दिन पशुओं को भी गौशालाओं से निकाल कर जंगल में सैर के लिए ले जाया जाता है। समाचार फर्स्ट परिवार की तरफ से आप सभी कौ सैर की हार्दिक शुभकामनाएं। उम्मीद करते हैं सैर प्रदेश में खुशहाली और सुख समृद्धि लेकर आएं।