भारत देश में हिन्दू धर्म का बहुत ही बड़ा महत्व है। भारत के हिमाचल प्रदेश में देवी – देवताओं के बहुत से मन्दिर है और हर मन्दिर का अपना अलग महत्व है। इसी वजह से हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। गुनगुनाती हुई नदियों और हरे – भरे लहराते खेतों वाले प्रदेश में लगभग 2000 मन्दिर हैं। हिमाचल में ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जो बिना देवता का पूजन किए यहां के लोग मनाएं।
इन्हीं मन्दिरों में से एक मन्दिर के बारे में आज हम को बताने जा रहे हैं जो विश्व प्रसिद्ध मन्दिर हैं। ये मन्दिर हिमाचल के सोलन जिले में है। सोलन हिमाचल प्रदेश का प्रमुख शहर है। सोलन शहर को मशरूम सिटी के नाम से भी जाना जाता है। इस जिले का नाम शूलिनी माता के नाम पर पड़ा है। जिस मन्दिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं वो शूलिनी देवी मन्दिर ही है।
मां शूलिनी देवी की उत्पति
शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है। कहते हैं जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि मुनि तंग हो गये थे वो भगवान शिव और विष्णु जी के पास गये थे और उनसे सहायता मांगी थी। तो भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा प्रकट हुए थी। जिससे सभी देवता खुश हो गये थे और अपने अस्त्र – शस्त्र भेंट करके दुर्गा मां का सम्मान किया था।
इसके बाद भगवान शिव ने देवी मां को अपने त्रिशूल का एक त्रिशूल मां को भेंट किया था जिसकी वजह से देवी दुर्गा मां का नाम शूलिनी पड़ा था। ये वही त्रिशूल है जिससे मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
मां शूलिनी देवी का इतिहास
देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा के बहुत से नामों के बारे में बताया गया है जिसमें शूलिनी नाम भी मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि दशम गोबिंद सिंह जी ने माँ शूलिनी की स्तुति करके आशीर्वाद प्राप्त किया था। माँ शूलिनी के प्रकट होने की कथा भी बहुत ही रोचक और दिलचस्प है। पौराणिक कथा के अनुसार माँ शूलिनी सात बहनों में से एक थी। बाकि की बहनें जेठी ज्वाला जी, हिंगलाज देवी, नैना देवी, लुगासना देवी और तारा देवी के नाम से जानी जाती हैं।
मां शूलिनी का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। कहते हैं सदियों पहले बघाट रियासत की राजधानी जौणाजी हुआ करती थी, ये उस समय की बात है जब इस राजधानी में राजा का राज हुआ करता है। वहां के राजा बिजली देव को एक सपना हुआ और सपने में मां शूलिनी देवी ने उनको दर्शन दिए जिसमें देवी माँ ने कहा कि मैं जौणाजी में रहती हूं और वहां धरती के नीचे से मेरी मूर्तियों को निकाला जाए।
इसके बाद ही राजा ने जौणाजी में खुदाई शुरू करवा दी और वहां से माँ शूलिनी देवी की और दो अन्य देवताओं की मूर्तियाँ निकलीं। इसके बाद तत्काल ही राजा ने इन मूर्तियों को सोलनी गांव में स्थापित कर दिया। 12 घाटों को मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील फैला है। पहले रियासत की राजधानी जौणाजी हुआ करती थी उसके बाद कोटी और फिर बाद में सोलन बनी।
मां शूलिनी देवी का मन्दिर कहां स्थित है ?
मां शूलिनी का मन्दिर हिमाचल के सोलन जिले में स्थित हैं। वर्तमान समय में शूलिनी माता का मन्दिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है। सोलन का नाम माँ शूलिनी के नाम पर पड़ा है और सोलन शहर माँ की अपार कृपा के कारण दिन – प्रतिदिन उन्नति ही करता जा रहा है। पहले सोलन बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी। इस रियासत के अंतिम शासक राजा दुर्गा सिंह थे। माँ शूलिनी देवी मन्दिर में माता शूलिनी, शिरगुल देवता, माली देवता की प्रतिमाएं मौजूद हैं।
मां शूलिनी मंदिर के प्रमुख त्योहार और मेला
ऐसा माना जाता है कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने से यहां किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी नहीं होती है। बल्कि मां शूलिनी के खुश होने से यहाँ सुख – समृद्धि और खुशहाली आती है। बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा को प्रसन्न करने के लिए मेले का आयोजन करते थे, यह परंपरा आज तक चल रही है। मां शूलिनी में मेला आज भी लगाया जाता है। देवी शूलिनी का ये मेला देश भर के सभी मेलों में से अनोखा है। हालांकि इस मेले का स्वरूप पहले से बहुत बदल गया है।
इस मेले में अलग–अलग जगह पर भंडार भी होता है, कुश्ती और प्रदर्शनियां इस मेले का मुख्य आकर्षण होती हैं। माँ शूलिनी देवी मेले में विभिन्न प्रकार के व्यजन खाने को मिलते हैं। ख़ास बात ये भी है कि ये सारी खाने की चींजे बिलकुल फ्री में मिलती है। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। मां शूलिनी मेले का आयोजन हर साल जून माह के तीसरे सप्ताह में किया जाता है। लोगों का कहना है कि इस मेले को पिछले 200 सालों से मनाते आये हैं।
कहते हैं कि इस मेले के जरिये मां शूलिनी शहर के भ्रमण पर निकलती हैं और जब वापिस आती हैं तो अपनी बहन के पास दो दिन के लिए रूकती हैं। इसके बाद मां शूलिनी मन्दिर वापिस आती है, यही वजह है कि मेले का आयोजन किया जाता है। साथ ही पुरे शहर में भंडारों का आयोजन भी किया जाता है। हर साल मेले की शुरुआत माँ शूलिनी देवी की शोभा यात्रा से होती है, जिसमें माता की पालकी के अलावा विभिन्न धार्मिक झांकियां निकाली जाती है। इस यात्रा में हजारों की संख्या में लोग माता शूलिनी के दर्शन करके सुख समृद्धि के लिए आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।