हिमाचल के देवालयों में नवरात्र के शुभ मौके पर भक्तजनों का तांता लगा हुआ है। आशापुरी मंदिर में भी आजकल भक्तजनों की भारी भीड़ जुट रही है। देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के तहसील पालमपुर में पहाड़ी की चोटी पर माता आशापुरी का मंदिर स्थित है। अपनी बेजोड़ वास्तुशिल्प के लिए चर्चित इस मंदिर की अपनी गाथा है। इस मंदिर की देखरेख पुरातत्त्व विभाग करता है। इस सिद्धपीठ का उल्लेख देवी भागवत पुराण में मिलता है। माना जाता है कि आशापुरी मंदिर भी पांडवों द्वारा बनाए गए अज्ञातवास वनवास के दौरान बनाया गया मंदिर है।
कहा जाता है कि द्वापर युग में पांडव अपने अज्ञात वास के दौरान मां आशापुरी से चार किलोमीटर की दूरी पर मल्ली की गुफाओं में भी कुछ दिन रहे थे। जब कर्ण पांडवों के अज्ञात वास को भंग करने मल्ली की गुफाओं में पहुंचा तो वहां उसे पांडव तो नहीं मिले, लेकिन उसे आशापुरी माता के दर्शन हुए और उसने आशापुरी की पिंडी को ढूंढ निकाला और वहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जो वर्तमान में आशापुरी के नाम से प्रसिद्ध है।
आशापुरी मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर माता वैष्णों पिंडी रूपों प्रकट हुई है। एक दूध बेचने वाले को मां ने सपने में दर्शन दिए। सुबह जब उसने सपने में दिखी गुफा का एक पत्थर हटाया तो वहां आगे का रास्ता खुद बना हुआ था। जब वह उस रास्ते से अंदर गया तो वहां पर माता वैष्णों की तीन पिंडिया और पत्थर के बने हुए अन्य देवी-देवता मिले। यहीं से थोड़ी दूर पर गुफा में बाबा भेड़ू नाथ के दर्शन होते हैं जहां पर लोग अपने पशु की रक्षा के लिए बाबा से मन्नतें मांगते हैं।