कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि उत्पन्न हुए थे। इनके उत्पन्न होने के समय इनके हाथ में एक अमृत कलश था जिस कारण धनतेरस पर बर्तन खरीदने का भी रिवाज है। मान्यता है कि इस दिन खरीदारी करने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। धनतेरस पर कई लोग धनिया के बीज भी खरीदते हैं। पिर दिवाली वाले दिन इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में बोते हैं।
अमृत के साथ आयुर्वेद लेकर धरती पर आए थे भगवान धन्वंतरि
मान्यता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था उस दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे। इसी वजह से इन्हें आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है। धरती पर प्रकृति से चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी के रूप में अवतार लिया था। भारत सरकार का आयुर्वेद मंत्रालय इस दिन को 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' के तौर पर मनाता है।
धनतेरस 2019, 25 अक्टूबर (शुक्रवार) यानि आज मनाया जा रहा है। पूजा शाम 7:08 बजे से शाम 8:22 बजे तक होगी। पूजा की पूरी अवधि 1 घंटा और 14 मिनट होगी।
धनतेरस मनाने के पीछे की कहानी
राजा हिम के 16 साल के बेटे की है। उनकी शादी के चौथे दिन सांप के काटने से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी ने अपने पति की जान बचाने का तरीका खोजा। उसने उस खास दिन अपने पति को सोने नहीं दिया। उसने अपने बहुत सारे गहने और सोने और चांदी के सिक्के एकत्र किए थे और अपने बिस्तर के कमरे के द्वार पर एक ढेर बना दिया था और कमरे में हर जगह दीपक जलाया। उसने पति को जगाने के लिए कहानियों का पाठ किया।
मृत्यु के देवता, यम सर्प के रूप में वहां पहुंचे थे। लाइटिंग लैंप और ज्वैलरी की वजह से अचानक उसकी आंखें चकाचौंध होने लगीं। वह उस कमरे में प्रवेश करने में असमर्थ था, जिसके कारण उसने सिक्कों के ढेर पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन राजकुमार की पत्नी का गाना सुनने के बाद वह पूरी रात वहीं बैठा रहा। और धीरे-धीरे सुबह हो गई और उसने अपने पति को ले जाने नहीं दिया। इस तरह उसने अपने पति की जान बचाई, तभी से इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा।