<p>शिमला के तारा देवी मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य पूरा हो चुका है। इस मंदिर को भले ही नए सांचे में ढाला गया है लेकिन मंदिर को पुरातन शैली में ही दोबारा से बनाया गया है। अब माता तारा अपने पुराने स्थान पर स्थापित हो चुकी है। दो साल से माता तारा देवी के मंदिर का जीर्णोद्धार चल रहा था। जिसके चलते माता की मूर्ति को आस्थाई रूप से दूसरी जगह रखा गया था। लेकिन अब मंदिर बन गया है इसलिए माता तारा अपने मूल स्थान पर लौट आई है।</p>
<p>तारा देवी मन्दिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 कि.मी. की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा मां मंदिर पहाड़ पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी तारा का काफ़ी महत्‍व है, जिन्‍हें देवी दुर्गा की नौ बहनों में से नौवीं कहा गया है।</p>
<p>यह मंदिर लगभग 250 वर्ष पुराना है। जिसकी स्‍थापना पश्चिम बंगाल के सेन वंश के एक राजा ने करवाई थी। मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा लकड़ी की बनी हुई है। शरद नवरात्रि को यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। ढाई सौ वर्ष पुराने इस मंदिर में तारा देवी की लकड़ी से बनी प्रतिमा बहुत सुन्दर और आकर्षित करने वाली है। यहाँ हर साल शारदीय नवरात्र पर अष्टमी के दिन मां तारा की पूजा की जाती है। साथ ही मेले का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें कुश्ती अहम हिस्सा है।</p>
<p>ऐसा माना जाता है कि तारा देवी मां क्योंथल रियासत के राजपरिवार की कुलदेवी थी। क्योंथल रियासत का राजपरिवार सेन वंश का है। एक कथा के अनुसार- राजा भूपेंद्र सेन जुनबा से गांव जुग्गर शिलगांव के जंगल में आखेट करने निकले, जहां पर मां भगवती तारा के सिंह की गर्जना झाड़ियों से राजा को सुनाई दी। फिर थोड़ी देर के बाद एक स्त्री की आवाज गूंजी- "राजन! मैं तुम्हारी कुलदेवी हूं, जिसे तुम्हारे पूर्वज बंगाल में ही भूल से छोड़कर आए थे।</p>
<p>राजन! तुम यहीं मेरा मंदिर बनवाकर मेरी तारा मूर्ति स्थापित करो। मैं तुम्हारे कुल एवं पूजा की रक्षा करूंगी।" राजा ने तत्काल ही गांव जुग्गर में दृष्टांत वाली जगह पर मंदिर बनवाकर एवं चतुर्भुजा तारा मूर्ति बनवाकर विधिवत प्रतिष्ठा करवा दी, जिससे यह तारा देवी का उत्तर भारत का मूल स्थान बन गया।</p>
<p>तारा भगवती के विपुल एवं रोमांचक तेज के आगे असावधानी होने से भी देवी कुपित हो जाती हैं। तारा देवी का मन्दिर मूल स्थान जुग्गर में काफ़ी पहले खण्डहर बन चुका था, जिसके पत्थर अवशेष मात्र ही शेष थे। नव मंदिर का निर्माण कार्य जयशिव सिंह चंदेल सहित अन्य श्रद्धालुओं ने तैयार करवाया। मान्यता पौराणिक एवं सिद्ध मान्यता है कि जब-जब तारा देवी मंदिर के आस-पास के गांवों में महामारी चेचक, प्लेग, हैजा एवं पशुओं में खुररोग, मुंहरोग, मस्से आदि फैले, तब-तब यहां लोकाचार मन्नत पद्धति एवं अनुष्ठान से सारी विभूतियों से प्रभावित श्रद्धालुओं ने मुक्ति पाई है।</p>
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