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पांडवों द्वारा अधूरा छोड़ा गया शिकारी देवी मां का मंदिर, भक्तों की आस्था का बन रहा केंद्र

पी.चंद, शिमला |

देव भूमि हिमाचल में साल भर मेलों त्योहारों का सिलसिला जारी रहता है। बात जब नवरात्र की हो तो यहां पर शक्तिपीठों के साथ कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर है जो पहाड़ी प्रदेश को एक अलग पहचान दिलाते है। ऐसा ही मंदिर पहाड़ी प्रदेश हिमाचल प्रदेश के मंडी में 2850 मीटर की ऊंचाई पर शिकारी देवी का मंदिर है। ये मंदिर भक्तों की आस्था का केन्द्र बन गया है। एक मान्यता के मुताबिक़  मार्कण्डेय ऋषि ने इस जगह पर सालों तक तपस्या की थी। ऋषि  के तप से प्रसन्न होकर मां दुर्गा शक्ति रूप में इस स्थान पर विराजमान हुईं।

माना जाता है कि इसी स्थान पर पांडवों ने भी अपने अज्ञातवास के दौरान तपस्या की। पांडवों की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा प्रकट हुईं और पांडवों को कौरवों के खिलाफ युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया था। उसी वक़्त पांडवों ने मंदिर का निर्माण शुरू किया। लेकिन किसी वजह से इस मंदिर की छत नहीं बन पाई। मां की पत्‍थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद पांडव यहां से चले गए। तब से ये मंदिर बिना छत के ही है। जो आज तक नहीं बन पाई।

सबसे चमत्कारी रहस्य ये है कि यहां हर साल बर्फ तो खूब गिरती है लेकिन मां के स्‍थान पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है। एक अन्य मान्यता यह भी है कि यह पूरा वन क्षेत्र था। यहां शिकारी वन्य जीवों का शिकार करने आते थे शिकार करने से पहले शिकारी इस मंदिर में सफलता की प्रार्थना करते थे। इस कारण इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ गया। प्राकृतिक नज़रों के बीच भक्तजन इस मंदिर तक पहुंचते है। माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से मंदिर में मन्नत मांगता है उसकी मुरादें पूरी होती है। नवरात्र में भक्तगण यहां भारी संख्या में पहुंचते हैं।