कल तक मंदिर में घंटियों की आवाज सुनाई दे रही थी, लेकिन सुबह होते ही गोशाल आराध्य देवों का मंदिर सुनसान हो गया। आज से 42 दिन तक मंदिर का प्रांगण इसी तरह सुनसान रहेगा। 42 दिनों तक न पूजा होगी और न ही मंदिर की घंटियां बजेगी। देवालय की घंटियां बांध दी गई और कपाट विधि पूर्वक बंद कर दिए गए हैं।
मान्यता अनुसार गोशाल के आराध्यदेव गौतम-व्यास ऋषि और कंचन नाग देवता विधि पूर्वक स्वर्ग प्रवास के लिए चले गए। इस दौरान देवता तपस्या में लीन रहेंगे, जिसके चलते मंदिर के प्रांगण सहित गांव का माहौल शांत रहेगा। आरध्यदेवों के कारकून सुबह ही देव कार्य में व्यस्त हो गए। कारकूनों द्वारा मिट्टी छानकर मृदालेप की विधि पूरी की गई। आज से 42 दिन बाद देवता के स्वर्ग प्रवास से वापस आते ही देवालय में रौनक लौटेगी। मृदा लेप हटाई जाएगी और देव कार्यक्रम में देवता साल भर की भविष्यवाणी से अवगत करवाएंगे।
इन नियमों का पालन करना होता 42 दिन
- शोर न हो इसके लिए देवालय की सभी घंटियां बांध दी जाती हैं।
- रेडियो व टेलीविजन बंद रखने के निर्देश दिए जाते हैं क्योंकि ऐसे करने से देवता की तपस्या में विघ्न पड़ता है।
- ऐसे किसी भी कार्य की अनुमति नहीं होती जिससे शोर होता हो।
- यहां पर टूरिस्ट को भी शांत रहने के लिए कहा जाता है
- गांव में किसी भी धार्मिक समारोह का आयोजन नहीं किया जाएगा।
- मोबाइल फोन को भी हम साइलेंट मोड पर कर देते हैं।
देव आदेश के चलते उझी घाटी के 9 गांव गोशाल गांव सहित कोठी, सोलंग, पलचान, रुआड़, कुलंग, शनाग, बुरुआ तथा मझाच के लोग लोहड़ी से अगले दिन 14 जनवरी से 26 फरवरी तक किसी उत्सव का आयोजन नहीं करेंगे।