शिकारी माता का यह मंदिर जिला मंडी के करसोग में जनजेलही घाटी में 11000 फ़ीट की उचाई में स्थित है। मगर सबसे हैरत वाली बात ये कि मंदिर पर छत नहीं लग पाई। कहा जाता है कि कई बार मंदिर पर छत डालने का प्रयास किया, मगर काम पूरा होने से पहले ही निर्माण ढह जाता है। यह माता का चमत्कार है या कोई अभिशाप, कि आज तक की गई सारी कोशिशें भी शिकारी माता को छत प्रदान न कर सकी।
माता शिकारी देवी नाम कैसे पड़ा
जिस जगह पर यह मंदिर है, वह बहुत घने जंगल के मध्य ने स्थित है। अत्यधिक घना जंगल होने के कारण यहां जंगली जीव-जन्तु भी बहुत हैं। पुराने जमाने में लोग शिकार करने के लिए इस घने जंगल में आया करते थे और पहाड़ की चोटी पर जहां माता का मंदिर है, वहीं से जंगल में शिकार का जायजा लेते थे। शिकारी मन्दिर में जाकर मां को प्रणाम करते और आग्रह करते कि आज कोई अच्छा शिकार हाथ लगे, कई बार शिकारियों की मुराद भी पूरी हो जाती थी, तब तक यहां का नाम शिकारी नहीं था।
लोग अक्सर शिकार की तलाश में आते रहते थे, तो यह स्थान शिकारगाह में ही तब्दील हो गया, शिकार वाला जंगल होने के कारण, लोगों ने इसे शिकारी कहना शुरू कर दिया। धीरे-2 यहां स्थापित दुर्गा मां भी शिकारी माता के नाम से जानी जाने लगी और प्रसिद्ध हो गई |
मान्यता है कि आंखों में कोई बीमारी होने पर अगर शिकारी माता को बनावटी आंख चढाई जाए तो आंखों की बीमारी ठीक हो जाती है। लाखों लोग हर साल आखें ठीक होने पर शिकारी माता मंदिर में चांदी की आखें चढ़ाते हैं।
शिकारी माता मंदिर का इतिहास
मार्कण्डेय ऋषि ने मंदिर वाली जगह पर वर्षों तक मां दुर्गा की तपस्या की मां दुर्गा ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें शक्ति के रूप में दर्शन दिया और यहां स्थापित हुई।
पांडवों ने किया मां के मंदिर का निर्माण
इसके बाद पांडव अपने अज्ञातवास के समय यहा आये थे तथा उन्होंने शक्ति रूप में विध्यमान माता की तपश्या करी जिस से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें महाभारत के युद्ध में कौरवो से विजयी प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। पांडव ने यहा से जाते वक्त मां के मंदिर का निर्माण किया परन्तु यह कोई भी जानता की आखिर इस मंदिर की छत का निर्माण पांडवों ने क्यों नहीं किया गया।