मंडी के जंजैहली में एक ऐसी विशालकाय चट्टान है जिसे पांडव शिला कहा जाता है। इस भारी भरकम वजनी चट्टान को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान निशानी के तौर पर यहां रखा था। कहा जाता है कि अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पर रूके थे। यहां से जाने से पहले अपनी निशानी के तौर पर भीम ने इस बड़ी चट्टान को कुछ इस प्रकार रखा था कि ये शिला आज तक उस स्थान से नहीं हटी है। अब यह पांडव शिला लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुकी है।
एक उंगली से हिल जाती है ये शिला
यह शिला लोगों के लिए अजुबा है। जिसे कोई भी व्यक्ति अपनी एक उंगली से हिला तो सकता है लेकिन, इसे अपने स्थान से हटा या पलट नहीं सकता। पांडव शिला लोगों की आस्था का भी केंद्र बनी हुई है। कहा जाता है कि आस्था के रूप में और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग इस पांडव शिला पर छोटे पत्थर फेंकते हैं। यदि पत्थर इस भारी भरकम चट्टान पर ही अटक जाए तो पत्थर फेंकते वाले व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण हो जाती है और यदि चट्टान पर न अटके और नीचे गिर जाए तो माना जाता है कि उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी नहीं हो पाती। इस तरह से पर्यटन यहां आने के बाद पत्थर फेंककर भाग्य अजमाते हैं।
यह है विशेषता
पांडव शिला की यह विशेषता है कि इसे एक उंगली से हिलाया जा सकता है। जिसके कारण यह लोगों के आकर्षण का केंद्र वर्षो से बनी हुई है। महाभारत काल की यह चट्टान पांडव शिला जंजैहली के कुथाह के पास है। यह चट्टान लोगों के आकर्षक का केंद्र तो बनी ही है वहीं, इसे आज तक कोई भी आंधी तूफान इस स्थान से नहीं हटा पाया है।
देश-विदेश से आते हैं पर्यटक
पांडव शिला नामक इस चट्टान को देखने के लिए प्रदेश के अलावा देश विदेश से यहां पहुंचते है। आस्था का केंद्र बन चुकी पांडव काल की इस शिला को लोग उंगली से या फिर अपने दोनों हाथों से हिलाते भी है ताकि इसकी सच्चाई को जान सके। जिसमें कभी भी लोगों को अभी तक निराश नहीं होना पड़ा है। आसानी से लोग इस शिला को हिला लेते हैं।
विकसित होगी पांडव शिला
एक अंगुली से हिलने वाली यह पांडव शिला अब टूरिज्म की दृष्टि से विकसित होगी। जिसकी कवायद टूरिज्म विभाग ने शुरू की है। मंडी टूरिज्म विभाग ने इस क्षेत्र को डेवेल्प करने का प्लान तैयार किया है। अब तक लापरवाही का शिकार होती आ रही पांडव शिला में अब लोगों को हर सुविधा मिलेगी। मंजूरी के लिए सरकार को भेजा गया है।