गोगा नवमी को गुग्गा नवमी के नाम से भी जाना जाता है। गोगा नवमी भादो महीने की कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इस दिन गोगा देवता की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गोगा देवता की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है। गोगा देवता को सांपों का देवता भी माना जाता है। गोगा नवमी की पूजा हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में होती है। मंडी जिला के लड़भडोल में भी गोगा नवमी का त्यौहार मनाया जाता हैं ।
गोगा देवता की पूजा रक्षाबंधन से शुरू होकर गोगा नवमी तक चलती है । इन दिनों गाने वालों की मंडलियां घर-घर जाकर गोगा का गुणगान करती हैं। लोग मन्डलियां भी गाते हैं परन्तु इस बार कोरोना महामारी के कारण 4-5 लोग ही मन्डली गाने आए । आठ दिन मन्डली गाते हैं फिर नौवें दिन गोगा नवमी मनाते हैं । गोगा देवता के मंदिर में पूजा की जाती है और प्रसाद चढ़ाया जाता है। प्रसाद के रूप में रोट और चावल का आटा चढ़ाते हैं। साथ ही गोगा नवमी पर लोग गोगा देवता की कथा सुनते हैं और भजन करते हैं।
गोगाजी को राजस्थान में भी पूजा जाता हैं
राजस्थान में गोगा को लोक देवता के रूप में माना जाता है और लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर, राजा मण्डलिक और जाहर पीर के नाम जानते हैं। यह गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी का प्रमुख स्थान है। ऐसा माना जाता है की अगर किसी के घर में सांप निकले तो गोगाजी को कच्चे दूध का छिटा लगा दें इससे सांप बिना नुकसान पहुंचाए चला जाता हैं । जिस घर में गोगा जी की पूजा होती हैं उस घर के लोगो को सांप नहीं काटता है। गोगाजी पूरे परिवार की रक्षा करते हैं।
गोगा नवमी की कथा-
ऐसा माना जाता है कि जब गोगा की शादी के लिए राजा मालप की बेटी सुरियल को चुना गया तो राजा ने शादी करने से मना कर दिया। इससे गोगा दुखी हुए और उन्होंने अपने गुरु गोरखनाथ को यह बात बतायी। इस पर गोरखनाथ ने वासुकी नाग को राजा की बेटी पर विष से प्रहार करने को कहा। वासुकी नाग के विष के प्रहार को राजा के वैद्य नहीं तोड़ पाए। इस पर वासुकी वेष बदलकर राजा के पास गए और उनसे गुग्गल मंत्र का जाप करने को कहा। गुग्गल मंत्र के जाप से विष का असर कम हो गया। इसके बाद राजा अपने वचन के अनुसार गोगा देवता से अपनी बेटी की शादी कर दी। इस तरह माना जाता हैं कि गोगा देवता की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है।