आपने स्कूल में बच्चों को जाते देखा होगा, पर एक स्कूल ऐसा भी है जहां 60 साल के बुजुर्गों को एडमिशन मिलता है जो इस बात को सही साबित करता है कि पढ़ाई और सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जी हां, हम बात कर रहे है मुंबई के उपनगरीय इलाके थाणे के फंगाने गांव के “आजीबाईची शाला” जिसमें 60-90 साल की 27 महिलाएं पढ़ती हैं।
इस अनोखे स्कूल की स्थापना महिला दिवस के दिन 2016 में इस स्कूल की स्थापना की गई थी। यह स्कूल “मोतीराम दलाल चैरिटेबल ट्रस्ट” की सहायता से संचालित है तथा इसके संस्थापक “योगेंद्र बांगड़” हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र जी का कहना है कि मेरे मन में स्कूल खोलने का विचार तब आया जब मैंने एक दादी मां को यह कहते सुना है कि काश! मैं गीता, रामायण पढ़ पाती। इसके बाद हम सबने स्कूल खोलने के लिए तैयारी की।
केवल बुजुर्गों को मिलता है एडमिशन
इस स्कूल की विशेषता यह है कि यह स्कूल आम लोगों या बच्चों के लिए नहीं है बल्कि यहां पर सिर्फ उन्हीं बुजुर्ग महिलाओं को प्रवेश मिलता है जिनकी उम्र कम से कम 60 वर्ष हो गई हो इसलिए इस स्कूल में आप दादी-नानियों को पढ़ते हुए देख सकते हैं। इसमें मराठी भाषा में ही पढ़ाई कराई जाती है तथा अन्य विषय भी पढ़ाये जाते हैं।
स्कूल का है एक ड्रेसकोड
इस स्कूल का एक ड्रेसकोड भी है और वह है “गुलाबी साड़ी।” महिलाओं को यह गुलाबी साड़ी, स्लेट, पेंसिल आदि मोतीराम दलाल चैरिटेबल ट्रस्ट की और से ही दी जाती है। इस स्कूल में हफ्ते के 6 दिन पढ़ाई की जाती है और हर दिन 2 घंटे ही क्लास दी जाती है। वर्तमान में इस स्कूल में 29 बुजुर्ग महिलायें पढ़ रही हैं।
देश में ऐसे बहुत से बुजुर्ग हैं जो आज भी साक्षर नहीं हैं और इसलिए आज इस प्रकार के स्कूलों की बड़ी संख्या में आवश्यकता है, जिनमें पढ़कर बुजुर्ग भी अपने जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर सकें।