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जाने क्यों मनाया जाता है करवा चौथ

रमित शर्मा |

17 अक्टूबर यानि वीरवार को महिलाएं सुहाग का व्रत करवाचौथ रखेंगी। यह करवा चौथ सभी व्रतियों के लिए शुभ संयोग लेकर आया है। लेकिन जिन लोगों के लिए पहला करवाचौथ है उनके लिए सोने पर सुहागा वाली बात हो गई है। इस बार चंद्रमा व्रतियों के लिए गुडलक लेकर आ रहे हैं। इसकी खास वजह यह है कि 70 साल बाद करवा चौथ की शाम चंद्रमा शुभ नक्षत्र में उदित होने जा रहा है। यह सभी व्रतियों के लिए अच्छा है लेकिन जिनका पहला करवा चौथ है उनके लिए सौगात की तरह है क्योंकि ऐसा दुर्लभ संयोग पहले व्रत में ही प्राप्त हो गया है।

करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं, यानी संकटों को दूर करने वाली चतुर्थी। इस साल करवा चौथ के दिन चांद रोहणी नक्षत्र में उदित होंगे। रोहिणी नक्षत्र चंद्रमा की सबसे प्रिय पत्नी है। इसलिए जब चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में होते हैं तो अत्यंत शुभ फलदायी होते हैं।

करवाचौथ का इतिहास
 
बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी।

ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।

मेहंदी का महत्व

मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति और ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता-फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान।
 
करवाचौथ पूजन
 
इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है। उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।

भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।

करवा का पूजन

करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है।

करवा चौथ की कथा

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण के चार बेटे और एक बेटी थी। चारों भाई अपनी बहन को बहुत प्रेम करते थे और उसका छोटा-सा कष्ट भी उन्हें बहुत बड़ा लगता था। ब्राह्मण की बेटी का विवाह होने पर एक बार वह जब मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी भाइयों से बहन को भूखा-प्यासा देखकर रहा ना गया और उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया।

एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी छितरा दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण कर लो। बहन ने ऐसा ही किया। भोजन करते ही उसे पति की मृत्यु का समाचार मिला। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी।

उस समय वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गयवह विलाप करती हुई ब्राह्मण कन्या के पास गई। तब ब्राह्मण कन्या ने अपने इस दुःख कर्म पूछा, तब इंद्राणी ने कहा- तुमने बिना चंद्रदर्शन किए ही करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसीलिए यह कष्ट मिला। अब तुम वर्षभर में आनेवाली चतुर्थी तिथि का व्रत नियमपूर्वक करने का संकल्प लो तो तुम्हारे पति जीवित हो जाएंगे! ब्रहामण कन्या ने रानी इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ के व्रत का संकल्प किया। इस पर उसका पति जीवित हो उठा और वह दोबारा सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए।