<p>किन्नौर जिला अपने सेब की बेहतर पैदावार और किस्म के लिए दुनिया भर में मशहूर है। किन्नौर के लाल और बड़े सेब को देखकर खाने को जी ललचाने लगता है। आज अपनी पैदावार को बढ़ाने और सेब के आकार और रंगीन बनाने के लिए कई तरह की दवाओं का छिड़काव किया जाता है, जो कि सेहत के लिए हानिकारक है।</p>
<p>लेकिन किन्नौर के मुरंग तहसील के तहत पड़ने वाले रिस्पा गांव का एक नेगी परिवार आज भी सेब को पारंपरिक तरीके से उगता है। यानी कि ये परिवार सेब में दवाओं का छिड़काव नहीं करता है बल्कि पशुओं के मल मूत्र से बनीऑर्गेनिक खाद से सेब की फसल उगाता है और बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाता है।</p>
<p><strong><span style=”color:#ff0000″>1984 से कर रही हैं और पारंपरिक तरीके से खेती:-</span></strong></p>
<p>इस काम का श्रेय नेगी परिवार की महिला राजवंती नेगी को जाता है जो 1984 से मेहनत कर रही हैं और पारंपरिक तरीके को अपनाकर सेब की फसल उगा रही हैं। बिना किसी कैमिकल और दवाई के छिड़काव के भी इनके सेब का आकार और मिठास दूसरे सेब से बहुत बेहतर रहता है। इतना ही नहीं सेब की फसल के उनको दूसरों के मुकाबले अच्छे दाम मिलते हैं।</p>
<p>बाकी दवाइयों के छिड़काव का खर्चा अलग से बचता है। इस परिवार ने सेब की फसल से आसपास के इलाकों में अपनी अच्छी साख बना ली है और अब इनकी देखा देखी में अन्य बागवान भी ऑर्गेनिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे है। नेगी परिवार सिर्फ सेब की ही जैविक खेती नहीं कर रहा है बल्कि ने फसलों में भी देशी खाद का उपयोग कर आमदनी बढ़ा रहा है।</p>
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