कोरोना वायरस के कहर से अब भी जूझ रही दुनिया को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भविष्य की महामारी को लेकर चेतावनी दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कीड़ो से पैदा होने वाली बीमारियां जोखिम को बढ़ा रही हैं। ऐसे में ये बीमारियां अगले महामारी का कारण बन सकती हैं। इन बीमारियों में जीका, यलो फीवर, चिकनगुनिया और डेंगू शामिल हैं, जो मच्छरों और कीड़ों से फैलती हैं। जीका वायरस अफ्रीकी देशों में पहले ही महामारी का रूप ले चुका है। ऐसे में डब्लूएचओ की चेतावनी के बाद दुनियाभर के देश टेंशन में हैं।
डब्लूएचओ ने कहा कि मच्छरों और कीड़ों से फैलने वाली बीमारियां अगली महामारी साबित होने की संभावित लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। विशेष रूप से ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल इलाके में रहने वाले लोगों के लिए खतरा ज्यादा है। इन इलाकों में दुनियाभर के कई देश आते हैं, जिनमें करीब 400 करोड़ लोग रहते हैं। वहीं, विशेषज्ञ कोविड -19 की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए रणनीति बनाना चाह रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ में ग्लोबल इंफेक्शियस हैजर्ड प्रिपेयरनेस टीम के डायरेक्टर डॉ सिल्वी ब्रायंड ने कहा कि हम दो साल से कोविड -19 महामारी से गुजर रहे हैं और हमने कठिन तरीके से जीना सीखा है। उन्होंने कहा कि भविष्य में होने वाले नुकसान से बचने के लिए हमें पहले से ही पर्याप्त तैयारी करने की आवश्यक्ता है। हमारे पास 2003 में सार्स बीमारी के बाद अगली महामारी के लिए तैयार रखने का मौका था। इन्फ्लूएंजा 2009 महामारी ने भी हमें चेतावनी दी थी, लेकिन हमने कोई तैयारी नहीं की।
डब्ल्यूएचओ की नई ग्लोबल अर्बोवायरस इनिशिएटिव के शुभारंभ पर उन्होंने बताया कि अगली महामारी अर्बोवायरस के कारण हो सकती है। इसमें मच्छर और कीड़े से पैदा होने वाली बीमारियां शामिल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पास कुछ संकेत भी हैं कि जोखिम बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ की नई ग्लोबल अर्बोवायरस इनिशिएटिव के गठन का उद्देश्य कीट-जनित खतरों से निपटने के लिए काम करना है।
जीका वायरस ने 2016 में 89 से अधिक देशों में तबाही मचाई थी। जबकि, यलो फीवर साल 2000 से लगातार बढ़ रहा है। इस बीमारी के दुनिया के 40 देशों में फैलने का जोखिम ज्यादा है। इस कारण रोगी को पीलिया और खून की उल्टियां होती है। डेंगू भी हर साल 130 देशों में 390 मिलियन लोगों को संक्रमित करता है। इस कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी होती है। चिकनगुनिया भले ही कम लोगों की जान लेता है, लेकिन इसका प्रभाव 115 देशों में देखा जाता है।