भारतीय साहित्य व विज्ञान पूरे विश्व का मार्गदर्शन करने की क्षमता है और हमारे विद्वानों को इस क्षेत्र में व्यापक शोध करने की आवश्यकता है। यह बात राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर कही।
‘आधुनिक भारत के प्रबुद्ध समाज-साहित्य और विज्ञान के संदर्भ’ विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में देश भर के विद्वान भाग ले रहे हैं। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थापना भारत के दूसरे राष्ट्रपति एवं प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. राधाकृष्णन ने एक ऐसे शोध केंद्र के रूप में की थी जिसमें देश-विदेश के विद्वान मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शोध कार्य करते रहे हैं।
उन्होंने कहा कि साहित्य व विज्ञान के विकास तथा इनके संरक्षण में आधुनिक भारतीय प्रबुद्ध समाज जिनमें गुजराती वर्नाक्युलर सोसायटी, कर्नाटक विद्वावर्धक संघ, नागरी प्रचारणी सभा, उत्कल साहित्य समाज व असम साहित्य सभा की अहम भागीदारी रही है।
शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि इतिहास गवाह है कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कारण हर क्षेत्र में सम्पन्न भारत विश्व में ज्ञान व विज्ञान से प्राप्त समृद्धि के लिए प्रसिद्ध रहा है।
देश की सांस्कृतिक, आर्थिक, अध्यात्मिक श्रेष्ठता व सम्पन्नता के कारण बड़ी संख्या में विदेशी भारत की ओर आकृष्ट हुए। इतिहास लेखन की तमाम विसंगतियों के बावजूद हमारा गौरवमयी इतिहास अक्षुण रहा है। भारतीय ज्ञान-सृजन और उसके प्रचार-प्रसार में प्रबुद्ध समाज की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण अब भारतवर्ष ने पुनः अपना गौरव हासिल कर विश्व में खोई प्रतिष्ठा को पुनः अर्जित किया है।
उन्होंने कहा कि मां, मातृभूमि तथा मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है। यह चिंता का विषय है कि भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति विश्वभर में आस्था, श्रद्धा व विश्वास में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन हमें अपनी नई पीढ़ी को विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण कर जीवन को अंधकार में धकेलने से सचेत करने की आवश्यकता है।
राज्यपाल ने कहा कि समस्त प्रबुद्ध समाज व सभी नागरिकों का दायित्व है कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन में अपनी सहभागिता दर्ज करवाकर नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करें।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश को सक्षम नेतृत्व प्राप्त है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज भारत विश्व में अपनी प्रतिष्ठा पुनः स्थापित करने में सफल रहा है।
इस अवसर राज्यपाल ने पौधरोपण भी किया। उन्होंने प्रो. डम्बरूधन नाथ द्वारा लिखित पुस्तक ‘निर्गुण भक्ति इन इस्टर्न इंडिया’ का भी विमोचन किया।
सम्मेलन में राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली, डॉ. अतुल कोठारी ने आजादी से पूर्व तथा उसके उपरांत भारत की समृद्ध संस्कृति तथा इतिहास पर किए गए कुठाराघात बारे तथ्यपूर्ण साक्ष्य व टिप्पणियां प्रस्तुत कीं।
उन्होंने कहा कि लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व प्राचीन भारत के चहुंमुखी विकास बारे विदेशी प्रख्यात इतिहासकारों ने हैरान करने वाले तथ्य प्रस्तुत किए हैं।
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के निदेशक प्रो. नागेश्वर राव ने संस्थान से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी दी।