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A Canvas of Tradition: हिमाचल की लोक परंपरा को संजोए सायर उत्‍सव, जानें त्‍योहार से जुड़ी खास बातें

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  • पहाड़ों में सर्द मौसम का हर्षोल्‍लास के साथ स्‍वागत
  • सगे संबंधियों को द्रूब और अखारोट किए गए भेंट
  • बाजारों में रही रौनक जमकर पर्व सामग्री की खरीददारी

 

समाचार फर्स्‍ट नेटवर्क

Mandi/Chamba। पहाड़ ठंड के लिए जाने जाते हैं। गर्म और उमस भरी बरसात खत्‍म होने के बाद शरद ऋतु का शुभागमन पहाड़ियों के लिए खास रहती है। इसी विशेष मौके को हिमाचल में सायर उत्‍सव के रूप में हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है। हिमाचल की परंपरा को संजोए रखने वाले इस पर्व  का निर्वाह सोमवार को सायर के शुभ अवसर पर हुआ।

बरसों पुरानी रीत निभाते हुए बरसात खत्म होने पर लोगों ने अपने-अपने रिश्तेदारों की खबर लेने और सुख-शांति के संदेश का आदान-प्रदान करने के लिए उन्हें द्रूब के साथ अखरोट भेंट किए। बच्चों ने मिलकर अखरोट का खेल खेला।  घरों में मौसमी जड़ी बूटियों के साथ नई फसल जैसे- धान, मक्की, पेठू, खीरा, गलगल, कूरी, कोठा, द्रीढ़ा आदि की पूजा अर्चना के साथ मंगल भविष्य की कामना की गई। बाजार अखरोट से सजे दिखे। लोगों ने सायर क मौके पर जमकर खरीददारी की।

  • मंडी में सायर

मंडी में लोग अखरोट खरीदकर और अपने दोस्तों और परिवार को देकर जश्न मनाते हैं। सड़क के किनारे बड़े-बड़े बोरों में अखरोट बेचने वाले व्यापारियों से भरा हुआ देख सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अखरोट से खेलने की परंपरा आज भी जारी है। यह खेल सड़क के चौराहे या घर के आंंगन के कोने पर खेला जाता है। शुरुआत करने के लिए, खिलाड़ी फर्श पर बिखरे हुए अखरोटों पर निशाना साधते हैं। यदि निशाना सही बैठता है, तो अखरोट उस व्यक्ति का हो जाता हैंं, जिसने अखरोट मारा है। इसके अलावा सिड्डू, कचौरी, चिल्डू और गुलगुले जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं। साथ ही यहां बड़ों से आशीर्वाद लेने की भी परंपरा है, इसे स्थानीय बोली में द्रूब देना कहा जाता है। इसके लिए दूब देने वाला व्यक्ति अपने हाथ में पांच या सात अखरोट लेकर बड़ों के पैर छूता है और फिर दूब उन्हें दे देता है। वही बड़े-बुजुर्ग कान के पीछे द्रब लगाकर आशीर्वाद देते हैं।

  • कांगड़ा, हमीरपुर और बिलासपुर

इन जिलों में सैर की सुबह की पूजा की तैयारियां रात से ही शुरू हो जाती हैं। पूजा की तैयारी में, लोग अपनी फसलें डालते हैं। जिनमें मक्का, अमरूद, नींबू के साथ-साथ गेहूं भी शामिल होता है। गेहूं को प्लेट में फैलाया जाता है और प्रत्येक जैविक उत्पाद को उसके ऊपर रखा जाता है। अगली सुबह, शहर का एक नाई सायर देवी का प्रतीक बताने वाले प्रत्येक घर में जाता है और उसे कुछ नकदी के साथ सीजन का उपहार दिया जाता है।  सुबह 6-7 व्यंजन तैयार किए जाते हैं, जिनमें से पकौडु, पतरोडु और भटूरू शामिल होते हैं।

  • कुल्लू में सज्जा

कुल्‍लू में इसे  सैरी-सज्जा’ कहते हैं। एक रात पहले, मेमने और चावल की दावत रात के खाने के लिए तैयार की जाती है और उत्सव का अगला दिन कुल देवता की विशेष सफाई और पूजा के साथ शुरू होता है। हलवा तैयार किया जाता है, जिसे बाद में रिश्तेदारों के बीच बांटा जाता है। कुल्लू के लोगों के लिए श्रावण माह की शुरुआत उत्सव का समय होता है। यह परिवार के सदस्यों से मिलने और उन्हें देखने का उत्सव है, जिनका स्वागत ध्रूूब से किया जाता है। जिसका  आदान-प्रदान करते समय बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। लोगों का मानना है कि इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और लोग ढोल बजाकर उनका स्वागत करते हैं। बहरहाल, हिमाचल में हर गांव के अपने-अपने देवता होते हैं, इसलिए लोग इस दिन उनकी पूजा और स्वागत करते हैं।

  • सोलन और शिमला में सायर मेला

सोलन और शिमला में सायर मेला इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं और लोग उनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ढोल बजाए जाते हैं और लोक नृत्य किये जाते हैं। सोलन के अर्की और शिमला के मशोबरा में सांडों की लड़ाई का आयोजन होता था, जो वर्तमान में प्रतिबंधित ।  कार्यक्रम के लिए औसतन 50 बैल एकत्र होते । इन लड़ाइयों से पहले सांडों को शराब भी पिलाई जाती। एथेंस के विपरीत, यहां आम लोगों को भी युद्ध देखने की अनुमति थी।  इसके अलावा, विभिन्न स्टॉल और संक्षिप्त दुकानें आयोजित की जाती हैं जो हस्तशिल्प, मिट्टी के बर्तन, वस्त्र, अलंकरण, बर्तन आदि  सजते। अनाज की पूजा होती और लोग एक दूसरे को मिलकर बधाई देते।

पहले आबादी बहुत कम थी, रिश्तेदार दूर- दूर रहते थे। बरसात अत्यधिक होने के कारण नदी-नाले उफान पर होते थे।आवाजाही के साधन न होने से एक-दूसरे से उनका संपर्क नहीं हो पाता था। बरसात खत्म होने पर लोग अपने-अपने रिश्तेदारों की खबर लेने और सुख-शांति के संदेश का आदान-प्रदान करने के लिए उन्हें द्रूब के साथ अखरोट देते थे, जो परंपरा आज भी निभाई जा रही है।काले माह के कारण मंदिरों के कपाट भी बंद रहते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि असुरों से लड़ने के बाद देवी देवता अपने देव स्थानों पर वापस लौट आएंगे। मंदिरों में दोबारा पूजा अर्चना का दौर शुरु हो जाएगा। इन दिन नवविाहिताएं भी काला माह मायका में बिताकर ससुराल आती हैं।

शंकर वासिष्‍ठ साहित्‍यकार