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टांडा मेडिकल कॉलेज: फिर फट्टे लगाए जाएंगे, फिर ख्वाब दिखाए जाएंगे!

समाचार फर्स्ट डेस्क |

हिमाचल प्रदेश में राजनीति का वास्ता जन-सरोकार से कम बल्कि 'फट्टों' से ज्यादा है। अब फट्टों को लेकर ज्यादा दिमाग चकराने की जरूरत नहीं है। जैसे प्राचीन काल में किसी राजा-महाराजा के कार्यकाल और साम्राज्य का विवरण शिलालेखों से मिलता है। उसी तरह वर्तमान में राजनेता अपने कार्यों का उल्लेख 'शिलालेख-कम-फट्टे' के जरिए कर देते हैं। लेकिन, कई जगहों पर फट्टे मरहूम योजनाओं की बानगी भर बनकर रह जाते हैं। हैरानी तो तब होती है जब सालों से शिलान्यास की कैद में जकड़ी योजनाओं का नए नामकरण के साथ दोबारा शिलान्यास कर दिया जाता है।

अब हिमाचल प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज टांडा को ही ले लीजिए। 2014 में ही सांसद शांता कुमार ने मरीजों के परिजनों के लिए सराय के निर्माण की बात कही थी। अप्रैल 2016 में बकायदा तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, सांसद शांता कुमार, तत्कालीन विधायक एवं मंत्री जीएस बाली की मौजूदगी में 'सराय' का शिलान्यास भी हुआ। लेकिन, इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस है। अलबत्ता, उस दौरान फट्टों पर जिन लोगों के नाम दर्ज थे वह भी गायब हैं। अब नई सरकार है, नया दौर है तो शायद नए फट्टे लगाने की तैयारी हो रही हो।

(इस सराय का शिलान्यास अप्रैल 2016 में हुआ था. लेकिन, अब इसमें से नाम के साथ लगी प्लेट हटा दी गई है. नई कवायद नए सिरे से शुरू…)

सालों बाद हुआ फंड का इंतजाम

जानकारी के मुताबिक शुरुआती चरण में सांसद शांता कुमार और विप्लव ठाकुर के सौजन्य से 50 लाख रुपये फंड की व्यवस्था कर दी गई थी। लेकिन, इसके बाद काफी वक़्त तक सराय का काम अटका रहा। समाचार फर्स्ट को टांडा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से मिली जानकारी के मुताबिक मेडिकल कॉलेज की तरफ से 86 लाख रुपये पीडब्ल्यूडी विभाग को सौंप भी दिए हैं। पीडब्ल्यूडी विभाग का भी दावा है कि 6 महीने के भीतर दो मंजिला भवन का निर्माण किया जाएगा और पहले चरण में 50 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे। इस बिल्डिंग में कुल अनुमानित लागत 2 करोड़ रुपये की है।

सराय के लिए क्या जगह पर्याप्त है?

जिस जगह पर शिलान्यास किया गया है। वह जगह अनुमान से काफी कम दिखाई देती है। हालांकि, इस बाबत 457 वर्ग मीटर क्षेत्र में सराय के निर्माण की चर्चा है। लेकिन, ठीक सड़क किनारे की जमीन होने से इसका दायरा कम पड़ रहा है। क्योंकि, सड़क किनारे से 5 मीटर और जमीन खाली छोड़नी पड़ेगी। ऐसे में अनुमानित जमीन कम पड़ सकती है।

जिस तरह से फट्टे लगाने और प्रॉजेक्ट को अधूरा छोड़ने की रवायत हिमाचल में रही है, उसके मद्देनज़र नई कसरत पर भी संदेह है। क्योंकि, पिछली सरकार ने भी ढाई साल में कुछ नहीं किया और वर्तमान में भी काम संभवत: कागजों पर ही दिखाई दे रहा है।