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हिमाचल की 54 दवाओं के सैंपल फेल, जानें कहीं आप तो नहीं खा रहे घटिया दवाएं

➤ हिमाचल की 54 दवाओं के सैंपल फेल, संक्रमण, बुखार और बीपी की दवाएं भी शामिल
➤ सोलन, सिरमौर, कांगड़ा और ऊना की कई दवा कंपनियों पर गिरी गाज
➤ नोटिस जारी कर कंपनियों से जवाब मांगा जाएगा, बाजार से स्टॉक वापस मंगेगा विभाग


हिमाचल प्रदेश एक बार फिर फार्मा उद्योग को लेकर सुर्खियों में है। प्रदेश के सोलन, सिरमौर, कांगड़ा और ऊना जिलों में बनी 54 दवाओं के सैंपल फेल हो गए हैं। जुलाई माह में जारी हुए ड्रग अलर्ट में देशभर की 143 दवाइयां मानकों पर खरी नहीं उतरीं, जिनमें सबसे अधिक संख्या हिमाचल की है।

सोलन जिले की 41, सिरमौर की छह, कांगड़ा की पांच और ऊना की दो दवा कंपनियों के नमूने फेल पाए गए। इनमें संक्रमण, बुखार, एलर्जी, उच्च रक्तचाप, मांसपेशियों में जकड़न, सीने में दर्द, पेट की जलन, आंख-कान की दवाएं, मिर्गी और फंगल इंफेक्शन की दवाएं शामिल हैं।

बद्दी की एलिफिकेयर कंपनी की गाबा पैंटिन कैप्सूल आईपी-300 के चार सैंपल, कैल्शियम व विटामिन डी-3, झाड़माजरी की बायोजैनेटिक लाइफ साइंस की ब्रूफिन, सोलन की वॉट्स फार्मा की एजेफॉल एक्स टी, बद्दी की कलिंगा हेल्थकेयर की मिग्नैप डी और जोरासैफ-500, रोमा फार्मा की कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, विटामिन डी-3 टेबलेट, मोरपेन कंपनी की एम्लोपेन 2.0 टेबलेट और सिरमौर की एडबिन फार्मा की अन्सीसेफ-20 टेबलेट समेत कई कंपनियों की दवाएं असफल रही हैं।

इसी तरह, बद्दी की रेबेंटीज हेल्थकेयर, सेंट क्योर प्राइवेट लिमिटेड, एफी ट्रेंलेंटलर्स, झाड़माजरी की लाइफ विजन हेल्थकेयर, सिग्मा सॉफ्टजेल, इनोवा कैप्टेब, कुमारहट्टी की एजोर्ट लाइफ साइंस, सिरमौर की लैबोरेट फार्मास्यूटिकल, ऊना की बीटामैक्स कंपनी, बद्दी की आईबीएन हर्बल, नाहन की एसबीएस बायोटेक, कांगड़ा की सैम्रबीर बायोटैक और नालागढ़ की हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड समेत कई अन्य कंपनियां भी लिस्ट में शामिल हैं।

राज्य दवा नियंत्रक मनीष कपूर ने कहा कि जिन कंपनियों के सैंपल फेल हुए हैं, उन्हें नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाएगा। साथ ही बाजार से स्टॉक तुरंत वापस मंगवाया जाएगा और नियमों के तहत संबंधित कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

यह खुलासा प्रदेश के दवा उद्योग पर सवाल खड़े करता है क्योंकि हिमाचल को देश की फार्मा हब कहा जाता है और यहां से बनी दवाएं बड़े पैमाने पर देश-विदेश में सप्लाई होती हैं। अब सवाल उठ रहा है कि आम मरीजों तक ऐसी दवाएं कैसे पहुंचीं और निगरानी तंत्र कहां कमजोर पड़ा।