नगर निगम धर्मशाला में बदहाली का यह आलम है कि तीन महीने से कोई भी बैठक नही हुई है जिससे विकास कार्य ठप्प पड़े हैं। आलम यह है कि मनोनीत पार्षदों को नगर निगम के विकास कार्यों की जानकारी से दूर रखा जा रहा है। यह बात प्रैसवार्ता के दौरान नगर निगम के 5 मनोनीत पार्षदों ने कही। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि बैठकें न करवाने के पीछे निर्वाचित पार्षदों का हाथ है। उन्होंने कहा कि नगर निगम के सफाई कर्मियों के पहचान पत्र नहीं बनाए गए हैं, ऐसे में शिमला शहर की तरह धर्मशाला में भी रोहिंग्या शरणार्थियों की नियुक्त होने की पूरी आशंका है।
उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम द्वारा मनोनीत पार्षदों के पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जाता, दो बार पत्र लिखा गया है लेकिन एक भी पत्र का जबाव नहीं मिला। 3 माह पहले उन्होंने मनोनीत पार्षदों के रुप में शपथ ली थी और निर्वाचित पार्षदों के साथ नगर निगम के विकास कार्यों में सहयोग देने को लेकर अपनी तरफ से पहल भी की थी, लेकिन पार्षदों और निगम अधिकारियों का उन्हें अभी तक कोई भी सहयोग प्राप्त नहीं हुआ है।
इस संबंध में स्थानीय मंत्री के समक्ष मामला उठाया गया है। उनके परार्मश के बाद ही निगम अधिकारियों से बातचीत के बाद सफाई व्यवस्था को लेकर हो रही अनियमितताओं की जांच की गई तो पाया गया है कि सफाई करवाने वाली कंपनी का टेंडर 6 वर्ष कर दिया गया है और हर महीने 16 लाख 53 हजार 800 रुपए का भुगतान किया जा रहा है। इतनी धन राशी देने के बाद भी सफाई व्यवस्था दुरुस्त नहीं है।
प्रदेश सरकार से की जा सकती है नगर निगम को भंग करने की मांग
मनोनीत पार्षदों का कहना है कि एमसी एक्ट के मुताबिक वार्ड स्तर पर वार्ड सभाओं का आयोजन नहीं हुआ है। एक्ट के मुताबिक 6 महीने में 3 बार बैठक करनी आवश्यक है। यदि बैठक न की गई तो नगर निगम की बैठक में प्रस्ताव पारित कर उन्हें हटाए जाने की कार्रवाई की जा सकती है। यही प्रक्रिया महापौर और उपमहापौर पर भी लागू होती है। यदि 3 बैठकों में लगातार न आए तो सरकार उन्हें हटा सकती है। उन्होंने कहा कि महापौर और उप-महापौर निगम के संचालन में विफल रहे हैं, ऐसे में उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो मनोनीत पार्षद नगर निगम को भंग करने की मांग सरकार से करेंगे।