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सरस्वती चली अपने घर कर्नाटक, शिमला के पागलखाने में भुगत रही थी हिंदी न आने की सजा

पी. चंद |

शिमला पिछले लगभग दो साल से शिमला के मैंटल रिहेबिलिटेशन सैंटर में रह रही कर्नाटका के मैसूर जिला की सरस्वती को आखिरकार मीडिया की मदद से उसके घर का पता मिल गया है। दो साल पहले डिप्रेशन में छोड़ चुके पति को खोजते-खोजते शिमला पहुंची सरस्वती के भाषा की दीवार ने  पागल बना दिया हिन्दी न बोल पाने के कारण ये अपनी बात किसी को भी समझा नहीं पाई और पागलों के बीच रही है।

भाषा की दीवार ने बना दिया पागल

हिन्दी न बोल पाने के कारण सरस्वती 2 साल तक पागलों के बीच रही है। कयोंकि सरस्वती को सिर्फ कन्नड़ भाषा आती है इसलिए कोई भी उसकी भाषा समझ नहीं पाया। उसकी बाज़ू पर पदमा नाम गुदा हुआ है इसलिए लोग इसे पदमा ही समझते रहे। आज जब सरस्वती के परिजन डॉक्टर सहित शिमला उसको लेने पहुंचे तो पता चला कि उसका नाम सरस्वती है। मीडिया के बार-बार मामला उठाने के बाद ये बात मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक पहुंची। उसके बाद कर्नाटक सरकार से संपर्क किया गया।

मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी सरस्वती से मिलने पहुंची

वहीं, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी साधना ठाकुर सरस्वती से मिलने मैंटल रिहेबिलिटेशन सैंटर पहुंची क्योंकि वह कन्नड़ भाषा जानती है। उन्होंने भी सरस्वती को उसके घर भेजने के लिए प्रयास किए अंततः आज सरस्वती खुशी-खुशी वह अपने घर लौट रही है। उसके चेहरे पर इसकी ख़ुशी झलक रही थी और बार-बार वह अपनी मां से मिलने की बात कहती रही। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने बताया की ऐसे और भी कई मामले प्रदेश में है जिनको संबंधित सरकारों से संपर्क कर हल किया जाएगा।