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सावन माह में सोलह श्रृंगार में शामिल मेहंदी की रंगत का महत्व

पी. चंद |

मेहंदी ने भारतीय सभ्यता संस्कृति में अपना अलग स्थान प्राप्त कर लिया है। सावन की रिमझिम फुहारों के बीच हाथ पांव में मेहंदी रचाने का आनन्द महिलाओं के लिए अनोखा ही होता है। मेहंदी का सानिध्य प्राप्त कर महिलाएं उसके रंग तरंग से भाव विभोर हो उठती है। मेहंदी के लाल रंग में रंगकर अपना दुःख तक भूल जाती है। मेहंदी से रंगे कोमल, सुंदर व सुरुचिपूर्ण हाथों का अपना ही आकर्षण है।

मेहंदी शुद्ध भारतीय मानी जाती है। सुप्रसिद्ध वैधक ग्रंथ "सुश्रित संहिता" में मंदयन्तिका के नाम से मेहंदी का उल्लेख मिलता है। जो बोई जाती है, तोड़ी जाती है फिर पत्थर में पीस दी जाती है। इतने कष्ट सहने के बाद मेहंदी मनोहारी रंग लाती है। तभी तो मेहंदी को लेकर शायरी में क्या खूब कहा है ।

सुर्ख़-रू होता है इंसां ठोकरें खाने के बाद ,

रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद।

भारतीय संस्कृति के मुताबिक सौभाग्यवती नारी के के जीवन में मेहंदी का अहम स्थान है। मध्यकाल से ही नारी के सोलह श्रृंगारों में मेहंदी भी एक है। श्रावण मास में मेहंदी का अपना ही रूप रंग है। मेहंदी सौभाग्य,  श्रृंगार व स्वास्थ्य तो देती ही है साथ ही उसकी लालिमा प्रेम की प्रतीक है। जो दाम्पत्य जीवन मे प्रेम भरने का काम करती है।