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शिमला: विदेशी पर्यटकों की मांग पर तीसरी बार ट्रैक पर दौड़ा स्टीम इंजन

पी. चंद, शिमला |

शिमला-कालका वर्ल्ड हेरिटेज ट्रेक पर बुधवार को तीसरी बार 117 साल पुराना ‘स्टीम इंजन’ विदेशी पर्यटकों की मांग पर छुक-छुक कर दौड़ा। भाप इंजन से निकलने वाली छुक-छुक की आवाज का पर्यटकों के लिए खास आकर्षण रहता है। भाप इंजन से शिमला से कैथली घाट 22 किलोमीटर तक के सफ़र में हसीन वादियों का पर्यटकों ने खूब आनंद उठाया। कालका-शिमला रेल मार्ग सौ साल से भी अधिक पुराना ट्रैक है।

इस ट्रैक को वर्ष 2008 में यूनेस्को ने तीसरी रेल लाइन के रूप में विश्व धरोहर में शामिल किया था। देवदार के हरे भरे पेड़ो के बीच चले इस इंजन ने दो बोगियां खींची। धुएं का गुब्बार छोड़ते हुए स्टीम इंजन के साथ विदेशी मेहमानों ने भी सफर का खासा आनंद लिया।

1 लाख 10 हजार में बूक करवया 'स्टीम इंजन'…

विदेशी पर्यटकों ने इस स्टीम इंजन को एक लाख दस हजार में बुक करवाया था। कालका-शिमला रेलवे के मुख्य निरीक्षक वाणिज्य अमर सिंह ठाकुर ने कहा कि इग्लैंड के पर्यटकों ने इस स्टीम इंजन को बुक करवाया है। स्टीम इंजन के साथ 14-14 सीटों वाले दो कोच लगा कर इसे शिमला रेलवे स्टेशन से रवाना किया गया। पॉल ट्रेवल द्वारा इस स्टीम इंजन की बुकिंग करवाई गई थी। पर्यटकों ने इसे एक लाख दस हजार में बुक करवाया था।

विदेशी पर्यटकों के ट्रेवलर एजेंट ने बताया कि वे हर साल विदेशी पर्यटकों के लिए स्टीम इंजन बुक करवाते हैं। इस बार भी उन्होंने इंग्लैंड के पर्यटकों के लिए जो ब्रिटिशों के बनाये हुए ट्रैक को करीब से देखना चाहते हैं उनके लिए इंजन की बुकिंग की है। विदेशी पर्यटक इस सफ़र को बहुत पसंद कर रहे हैं।

वहीं कालका शिमला रेलवे के मुख्य निरीक्षक वाणिज्य ने बताया कि शिमला रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड बाबा भलकू संग्रहालय तक चलाये जा रही ट्रेन का भी पर्यटक काफी आनंद उठा रहे है। पर्यटक केवल 50 रुपये में सफ़र के साथ संग्रहालय में भी घुमने का आनंद उठा सकते हैं।

गौरतलब है कि शिमला-कालका रेल लाइन को यूनेस्कों की ओर से विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है। साल 1903 में बिछाई गई 96 किलोमीटर कालका-शिमला रेललाइन में 102 सुरंगें, 800 पुल और 18 रेलवे स्टेशन हैं। शिमला में पहली ट्रेन नौ नवंबर 1903 को पहुंची थी।

ये स्टीम इंजन कालका कैथलीघाट के बीच 1905 में पहली बार चलाया गया था। इस ट्रैक पर वर्ष 1970 तक भाप इंजन ही चलते थे। इसके बाद डीजल इंजन आने पर भाप इंजन बंद हो गए लेकिन धरोहर के रूप में अब भी उत्तर रेलवे ने कुछ भाप इंजन को संभाल कर रखा हुआ है।