कुल्लू की तीर्थन घाटी की ग्राम पंचायत नोहन्नदा में आजादी के 7 दशक बाद भी विकास से कोसों दूर है। इस पंचायत के दारन, शूंगचा घाट, लक्कचा, नाही, शालींगा, टलींगा, डींगचा और झानीयार आदि गांव के लोग अभी तक सरकार और प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कब तक उनकी देहलीज तक भी सड़क पहुंच जाए। यहां के लोग अभी तक अपनी पीठ पर बोझ ढोने को मजबूर हैं।
गौरतलब है कि घाटी विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का प्रवेश द्वार है जहां पर जैविक विविधता का अनमोल खजाना है, यहां प्रतिवर्ष सैंकड़ों अनुसंधानकर्ता, प्राकृतिक प्रेमी, पर्वतारोही, ट्रैकर और देश विदेश के सैलानी घूमने फिरने का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो मरीज को दुर्गम पहाड़ी पगडंडी रास्तों से लकड़ी की पालकी में उठा कर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है।
जानकारी के अनुसार कुछ पहले ही एक प्रसूता महिला को अस्पताल के लिए पालकी में गांव से सड़क तक पहुंचाया और उसके बाद प्रसव होने के बाद फिर से बर्फबारी के बीच गांव तक पहुंचाया। साथ ही इस क्षेत्र से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को हाई स्कूल और इससे आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन करीब 2 से 6 घंटे तक का सफर पैदल तय करना होता है।
लोगों का कहना है कि विश्व धरोहर की अधिसूचना जारी होने के बाद पार्क क्षेत्र से उनके हक छीन लिए गए लेकिन पार्क प्रबन्धन ने प्रभावित क्षेत्र के लोगों के उत्थान एवं विकास के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए हैं। यदि यहां के आम रास्तों को भी अच्छे से घोड़े खच्चर चलने लायक बनाया होता तो भी लोगों को कुछ राहत मिल सकती थी। इस क्षेत्र के लोगों को आजतक राजनेताओं से सड़क के नाम पर महज कोरे आश्वासन ही मिलते रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सड़क के नाम से कई सालों से महज कागजी घोड़े ही दौड़ रहे हैं जो ना जाने कहां तक पहुंचे हैं।
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि उनकी समस्या के समाधान करने का आश्वासन कई बार सालों से राजनेताओं से चुनाव के वक्त मिलते रहे लेकिन समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। फिर भी लोगों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर उनकी इस समस्या का जरूर समाधान करेंगे।