हिमाचल का चुनावी समर खत्म हो चुका है। हिमाचल की चारों सीटों पर रिकॉर्ड मतदान दर्ज किया गया है। पहली बार हिमाचल के इतिहास में लोकसभा के चुनाव में 71 फीसदी से ज्यादा वोटिंग दर्ज की गई है। हिमाचल में 45 प्रत्याशियों का भविष्य ईवीएम मशीन में बंद हो गया है जोकि 23 मई को खुलेगा। इससे पहले दुकानों, गलियों-चौराहों में हर रोज सरकारें बन और बिगड़ रही है। सभी मतदाता अपने हिसाब से सीटों का अंकगणित बिठा रहे हैं।
वैसे तो हिमाचल प्रदेश मैं चारों सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है। इस मर्तबा भाजपा की सरकार प्रदेश में है इसलिए भाजपा दोबारा से चारों सीटों पर अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है। लेकिन जिस तरह से शिमला और कांगड़ा में प्रत्याशी बदले गए उससे लगता है की भाजपा को भी कहीं न कहीं अपनी जीत पर संशय था। फिलहाल जिस हिसाब से हिमाचल में रिकॉर्ड मतदान हुआ है उससे जहां भाजपा गदगद नजर आ रही है और कह रही है कि मतदाताओं ने केन्द्र की मोदी सरकार व हिमाचल की जयराम ठाकुर की 1 साल के विकास कार्य पर वोट किया है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी है जो यह कह रही है कि यह जो रिकॉर्ड मतदान दर्ज किया गया है वह केंद्र व प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ है। इसलिए प्रदेश में चारों सीटें कांग्रेस जीतेगी।दोनों ही पार्टियां अपनी अपनी जीत का दावा कर रही हैं।
वैसे चैनलों के एग्जिट पोल भी भाजपा के पक्ष में आए है। जिसमें हिमाचल की चारों सीटें भाजपा को दी गई है लेकिन जिस तरह से इस बार वोटर खामोश रहा है, उससे कई मायने निकाले जा रहे हैं। प्रदेश में वोटरों की खामोशी रिकॉर्ड मतदान क्या किसी बड़े उलटफेर की ओर इशारा कर रहा है। यदि ऐसा है तो दोनों ही पार्टियों को अपनी कार्य शैली पर परिणामों के बाद मंथन करने की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि पिछली बार विधानसभा चुनावों में जिस तरह से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए थे और दिग्गज नेता प्रदेश में चुनाव हार गए थे। उससे लगता है कि हिमाचल का मतदाता अब जागरूक है। और अपने मत का प्रयोग झूठे वायदे और झूठी शान दिखाने वाले नेताओं के पक्ष में नहीं करता है।
इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही कुछ नेता प्रचार में खुलकर सामने नहीं आए उससे लग रहा है कि दोनों ही पार्टियों में गुटबाजी कम नहीं है। ख़बर तो ये भी है कि कुछ नेताओं ने अपने उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ काम किया है। भाजपा की गुटबाजी भी किसी से छिपी नहीं है। यही वजह है कि शुरू में एक तरफा व आसान माने जा रहे मुक़ाबले को गुटबाजी ने मुश्किल कर दिया है। अब 23 मई को पता चलेगा जीत का जो अंतर है वह कितना रहता है। वैसे भाजपा इस बार पहले से मुकाबले ज्यादा जीत के मार्जिन की बात कर रही है।