नवरात्रों के शुभ मौके पर देश के शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। 51 शक्तिपीठों में से देवी मां का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका मंदिर से प्रसिद्ध है। श्रीयंत्र का स्वरूप छिन्नमस्तिका दस महाविद्याओं में छठा रूप माना जाता है।यह मंदिर दामोदर-भैरवी संगम के किनारे त्रिकोण मंडल के योनि यंत्र पर स्थापित है, जबकि पूरा मंदिर श्रीयंत्र का आकार लिए हुए है। लाल-नीले और सफेद रंगों के बेहतर समन्वय से मंदिर बाहर से काफी खूबसूरत लगता है।
माँ का यह स्वरूप देखने में बड़ा डरावना है। मंदिर में उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा में उनका कटा सिर उन्हीं के हाथों में है, और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है। जो दोनों और खड़ी दोनों सहायिकाओं के मुंह में जाता है। शिलाखंड में देवी की तीन आंखें हैं। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। बाल खुले हैं और जीभ बाहर निकली हुई है। आभूषणों से सजी मां नग्नावस्था में कामदेव और रति के ऊपर खड़ी हैं। दाएं हाथ में तलवार लिए हैं। पुराणों में भी रजरप्पा मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है।
मंदिर में 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं। मंदिर रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। जहां दामोदर व भैरवी नदी का संगम भी है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमिस्तके यहां रात्रि में विचरण करती है। इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। मंदिर में श्रद्धालु दूर दूर से दर्शन करने आते हैं। नवरात्र में तो भक्तों की यहाँ भारी भीड़ जुटती है।