धर्मगुरू 14वें दलाई लामा आज चंडीगढ़ जाते हुए कुछ देर के लिए ऊना सर्किट हाउस में रुके। इस दौरान उपायुक्त ऊना संदीप कुमार ने उनकी अगवानी की। पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में दलाई लामा ने कहा कि भारत और चीन के बीच में अच्छे रिश्ते होना बहुत आवश्यक है। दोनों देशों की सभ्यताएं बहुत पुरानी हैं और आर्थिक तौर पर भी दोनों ही देश बड़ी शक्तियां हैं। ऐसे में दोनों मुलकों के बीच अच्छे रिश्ते बेहद आवश्यक हैं।
तिब्बत की आजादी पर पूछे गए सवाल पर तिब्बती धर्मगुरू ने कहा कि साल 1974 में हमने तय किया कि चीन से आजादी की मांग नहीं की जाएगी। चीन में रहते हुए तिब्बती सिर्फ अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए कुछ अधिकारों की मांग कर रहे हैं। हम तिब्बती नांलदा दर्शन का अनुसरण कर रहे हैं और नालंदा दर्शन तर्क पर आधारित है। आज चीन के कुछ बुद्धिजीवी भी मानते हैं कि तिब्बती बौद्ध धर्म पौराणिक नालंदा परंपरा के अनुसार है जो पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है। इन बौद्ध शिक्षाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ पढ़ाया जा सकता है।
दलाई लामा ने कहा कि एक ओर तिब्बती भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर पिछले 60 सालों में हमने भारत की आजादी का आनंद लिया है। साल 2001 में उन्होंने राजनीतिक फैसलों से स्वंय को अलग कर लिया था और भारत में रहने वाले मुट्ठी भर तिब्बती शरणार्थी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया है। आज तिब्बतियों की चुनी हुई सरकार सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं।