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कांगड़ा: स्वतंत्रता सेनानी रतन चंद का निधन, राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार

मनोज धीमान |

1916 में शाहपुर विधानसभा क्षेत्र के गांव चड़ी में जन्में स्वतंत्रता सेनानी रतन चंद उर्फ माधो राम का शुक्रवार को बीमीरी के चलते निधन हो गया है। 104 साल के रतन चंद का शनिवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार के दौरान सरकार और प्रशासन की ओर से आला अधिकारियों ने अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। रतन चंद अप्रैल 2016 में शतकवीर बने थे । उन्हें बतौर शतकवीर विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के मतदाता होने का भी गौरव हासिल था।

कैबिनेट मंत्री सरवीण चौधरी, पूर्व कैबिनेट मंत्री मेजर विजय सिंह मनकोटिया, शाहपुर के एसडीएम जगन सिंह ठाकुर समेत डीएसपी सुनील राणा भी श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे। इस दौरान भारतीय सेना की 16वीं पंजाब बटालियन की अगुवाई में स्वतंत्रता सेनानी की दिवंग्त आत्मा को सैनिक सम्मान के साथ श्रद्धांजलि अर्पित की गई और पुलिस की ओर से उन्हें सलामी देकर अंतिम विदाई दी गई। रतन चंद के इकलौते बेटे अमरीक सिंह के अस्वस्थ होने के चलते उनके पोते साहिल ठाकुर ने अपने दिवंग्त दादा स्वतंत्रता सेनानी रतन चंद उर्फ माधो राम को मुखाग्नि देकर उन्हें पंचतत्व में विलीन किया।

रतन चंद वो शख्सियत थीं जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज में एक वीर सैनिक के तौर पर अपनी सेवाएं देकर स्वतंत्रता सेनानी का तमगा हासिल किया था। इतना ही नहीं रतन चंद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ रंगून की जेल में कैदी बनकर भी रहे थे। जिन्हें कुछ अरसा एक दूसरे के साथ खान-पान और एक दूसरे को समझने का मौका भी मिला था।

नेताजी के बेहद करीबी होने के चलते उनके दिल में भी देश के स्वराज के लिए ठीक उसी तरह तड़प थी जिस कदर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के दिलो-दिमाग में थी।  हालांकि टोकियो जाते वक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी फौज़ को डिस्मेंटल कर सभी सिपाहियों को अपनी-अपनी राह पर जाने का हुकम सुना दिया था। बावजूद इसके देश की आजादी की लौ अपने दिल में लिये हुए कई देशों की यात्रा के बाद रतन चंद स्वदेश तो लौटे लेकिन तब तक देश की आजादी के लिए निस्वार्थ भाव से लड़ते रहे जब तक की देश आजाद नहीं हो गया।