कर्फ्यू में जहां विद्यार्थियों ने घर में रहकर कुछ अलग करने की कोशिश की है, वहीं कुल्लू जिला के शास्त्रीनगर निवासी जमा दो कक्षा की 17 साल की छात्रा ओजस्विनी सचदेवा ने समय का सदुपयोग बड़े अनूठे तरीके से किया। ओजस्विनी ने अपने परदादा नानक और दादा युद्धिष्ठर के जीवनकाल पर आधारित एक पुस्तक 'उदगम' लिखकर बड़ी उपलब्धि अपने नाम कर ली है। पुस्तक में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए उनके दादा के रिफ्यूजी होने के दर्द को बयां किया है।
ओजस्विनी ने बताया कि रिफ्यूजी कहलाना इतना आसान नहीं है। कई बार आसपास के लोगों से काफी कुछ सुनना पड़ता है। कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल मौहल में पढ़ने वाली ओजस्विनी बताती हैं कि उसे बचपन से कविताएं लिखने का शौक है। जहां कर्फ्यू में उसने काफी कविताएं लिखी वहीं प्रधानाचार्य सुधा महाजन ने उसे पुस्तक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। उसके बाद उसने 25 मार्च से पुस्तक लिखना शुरू की थी। ओजस्विनी बताती हैं कि जब वह छोटी थी तो उनके दादा की मौत हो गई थी लेकिन रिफ्यूजी होने का दंश उन्हें और उनके परिवार को पहले भी और आज भी झेलना पड़ता है। पिता हितेश कुमार और माता भारती उन्हें हमेशा उनके दादा और परदादा के बारे में बताते रहते थे कि किन परिस्थितियों में वह बंटवारे के बाद भारत आए और यहां पर उन्हें किस तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ा।
ओजस्वनि ने बताया कि हालांकि पुस्तक एमेजन पर ही प्रकाशित हुई है। जल्द ही सभी को हार्ड कॉपी उपलब्ध करवाई जाएगी। ओजस्विनी ने बताया कि वह भविष्य में समाजसेवा करना चाहती हैं। ओजस्विनी इससे पहले एक कविता संकलन भी प्रकाशित कर चुकी हैं जिसमें पांच कविताएं हैं। वे कविताओं के माध्यम से युवाओं को संस्कृति को बचाने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। पिता व माता ने कहा कि उन्हें गर्व है कि उनकी बेटी ने दादा के दर्द को शब्दों के माध्यम से पुस्तक में पिरोया है, जो उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है।