राजधानी शिमला में सबसे ज़्यादा 70 फ़ीसदी नेपाली मज़दूर सेब का काम करते हैं। प्रदेश में सेब को आर्थिकी 4500 करोड़ की है। हर साल लगभग सीजन में 90 हज़ार मज़दूरों की जरूरत पड़ती है। इनमें से 50 हज़ार मज़दूर शिमला से वापिस जा चुके हैं। सिर्फ 40 हज़ार के करीब मज़दूर हैं उनमें से अधिकतर अब यहीं के बाशिन्दे बन गए हैं। बाकी लेबर अभी पहुंची नहीं है। 15 जुलाई के बाद सेब सीजन शुरू होने वाला है। ऐसे में सेब बाग़वानो की चिंताएं बढ़ गई है। करीब 2 लाख नेपाली मज़दूर सेब सीजन में तुड़ान, ढुलाई से लेकर सेब को मंडियों तक पहुंचाने का काम करते है। लेकिन अब हिमाचल से आधे से ज़्यादा मज़दूर वापिस लौट चुके है। ऐसे में बागवान परेशान है कि उनकी फ़सल को मंडियों तक कैसे पहुंचाया जाएगा।
जलशक्ति मंन्त्री महेंद्र सिंह कहना है कि प्रदेश में सबसे ज़्यादा नेपाली मज़दूर शिमला में आते है। हां, लॉकडाउन में मज़दूर वापिस लौट गए हैं। बावजूद इसके नेपाल के साथ लगते क्षेत्रों से मज़दूर मंगवाने के लिए संबंधित डीसी से संपर्क किया जा रहा है। इस मर्तबा सेब की फसल पिछले साल के मुक़ाबले कम है इसलिए मज़दूरों की भी कम ज़रूरत पड़ेगी। उम्मीद यही है कि सेब सीजन सुचारू रूप से पूरा होगा और बागवानों को परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी।
मौजूदा समय में करीब 90 हजार नेपालियों के प्रदेश में अलग-अलग जिलों में होने की बात की जा रही है। 15 दिन में सेब सीजन शुरू हो रहा है। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या नेपाली मज़दूरों और सेब कार्टन की है। जो फ़िलहाल ज़रूरत के मुताबिक़ नही मिल पा रहे है। प्रदेश में 2018, में 1.90 करोड़ पेटियां हुई थी जबकि 2019 में 3.20 करोड़ पेटियां हुई। इस मर्तबा भी क़रीब 2 करोड़ पेटियां होने की उम्मीद है ऐसे में मज़दूरों की ज़रूरत तो पड़ेगी।