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महिला सैन्य अधिकारियों को स्थाई कमीशन न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने की सेना की आलोचना, 2 महीने में स्थाई कमीशन देने को कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन न देने पर अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव करने के लिए सेना की आलोचना की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ख्याति अर्जित करने वाली महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन के अनुदान के लिए नजरअंदाज किया गया। शॉर्ट सर्विस कमीशन में परमानेंट कमीशन देने के मामले में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि समाज पुरुषों के लिए पुरुषों द्वारा बनाया गया है, अगर यह नहीं बदलता है तो महिलाओं को समान अवसर नहीं मिल पाएगा।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है, समानता की बात झूठी है। आर्मी ने मेडिकल के लिए जो नियम बनाए वो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है। महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना रास्ता नहीं निकल सकता। कोर्ट ने 2 महीने में इन महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सेना में कई महिला अधिकारियों को फिटनेस के आधार पर स्थाई कमीशन नहीं देने को कोर्ट ने गलत बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर 2010 में पहला फैसला दिया था, 10 साल बीत जाने के बाद भी मेडिकल फिटनेस और शरीर के आकार के आधार पर स्थायी कमीशन न देना सही नहीं है, ये भेदभाव पूर्ण और अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने सेना को निर्देश दिया कि वह एक महीने के भीतर महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन देने पर विचार करे और नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए 2 महीने के भीतर इन अधिकारियों को स्थायी कमीशन दे। इससे पहले पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने का आदेश दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में भी महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने का आदेश दिया था, लेकिन 284 में से सिर्फ 161 महिलाओं को परमानेंट कमिशन दिया गया है। इन लोगों को मेडिकल ग्राउंड पर रिजेक्ट किया गया था।