हिमाचल प्रदेश में तैनात आशा वर्कर्स ने सरकार पर अपनी अनदेखी का आरोप लगाया है। यूनियन का कहना है कि उनके काम के समय का कोई प्रावधान नहीं है। उनके काम की तारीफ़ जरूर की जाती है लेकिन मिलता कुछ नहीं है। तारीफ से न घर चलता है न पेट भरता है। जान जोख़िम में डालकर वे घर से लड़ाई करके निकलते है। बदले में अभी तक उन्हें 2000 रुपए ही मानदेय मिल रहा है। 2750 की घोषणा अभी कागजों में ही धूल फांक रही है।
कोरोना काल में सबसे अधिक काम आशा वर्कर से लिया गया। जो फ़ोन आशा वर्कर को दिए गए वह चलते नहीं हैं। ऐसे में उनके सामने विपरीत भूगौलिक परिस्थितियों में कई चुनौतीयों का सामना करना पड़ता है। यूनियन की राज्य अध्यक्ष सत्या रांटा का कहना है कि सरकार से कई बार मांग उठा चुके है। कई पत्र लिख चुके है बावजूद इसके उनके लिए न स्थाई नीति बनाई गई न ही उनके मानदेय में आशातीत वृद्धि की गई है।
750 रुपए बढ़ाने की घोषणा तो सरकार ने की लेकर आजतक नहीं मिले। आशा वर्कर को कोरोना से लेकर कैंसर, औऱ टीबी तक के मरीजों के पास भेजा जाता है। डॉक्टरों का काम वह कर रही हैं, जबकि सरकार ने आशा वर्कर रखने के लिए न्यूनतम 8वीं पास योग्यता रखी थी। लेकिन अब उनसे डॉक्टरों का काम लिया जा रहा है। मुख्यमंत्री को एक बार फ़िर पत्र लिख कर मांग उठाई है कि यदि हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता तो हम पुरे हिमाचल में काम बंद करके भूख हड़ताल पर बैठेंगे और आत्मदाह करने में भी संकोच नहीं करेंगी।
हिमाचल प्रदेश में 7,964 आशा वर्कर काम कर रही है। इनको 2017 में 1000 रुपया मानदेय मिलता था। हालांकि तीन साल में मौजूदा सरकार ने 1,750 की वृद्धि की है।लेकिन अभी तक इनको 2000 रुपए ही मानदेय मिल रहा है। अप्रैल माह से बढ़ा हुआ 750 रुपए का मानदेय नही मिला है। इसके विपरीत आधा वर्कर से कोरोना काल में पूरा काम लिया गया।